Book Title: Jain Katha Kosh
Author(s): Chatramalla Muni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh prakashan

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Page 344
________________ जैन कथा कोष ३२७ में रहे। दो महीने कम २१ लाख वर्ष तक केवलज्ञानी रहकर तीर्थंकर पद पर रहे । अन्त में एक हजार साधुओं के साथ सम्मेदशिखर पर अनशन किया। एक मास के अनशन में प्रभु ने श्रावण बदी ३ के दिन निर्वाण प्राप्त किया। श्रेयांसनाथ इस चौबीसी के ग्यारहवें तीर्थंकर हैं। धर्म-परिवार ७६ वैक्रियलब्धिधारी ११,००० केवली साधु ६५०० वादलब्धिधारी ५००० केवली साध्वी १३,००० साधु ८४,००० मन:पर्यवज्ञानी ६००० साध्वी १,०६,००० अवधिज्ञानी ६००० श्रावक २,७६,००० पूर्वधर १३०० श्राविका ४,४८,००० -त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र गणधर १६३. सकडालपुत्र 'पोलसपुर' नगर में एक ऋद्धि-सम्पन्न कुम्हार रहता था, जिसका नाम 'सकडालपुत्र' था। वह तीन कोटि धन का स्वामी था। दस हजार गायों का एक गोकुल उसके पास था। बर्तन बनाने और बेचने का उसका प्रमुख धन्धा था। नगर में उसके बर्तनों की पाँच सौ दुकानें थीं, जिनमें हजारों आदमी काम करते थे। इसकी कुम्भकारशाला के बर्तन नगर में बहुत अधिक बिकते थे। इसकी पत्नी का नाम 'अग्निमित्रा' था। गोशालक के सिद्धान्तों पर इसकी अच्छी निष्ठा थी। इतना विशाल व्यापार होते हुए भी सकडालपुत्र धार्मिक वृत्ति वाला व्यक्ति था। एक दिन अपनी अशोकवाटिका में बैठा सकडालपुत्र धार्मिक चिन्तन कर रहा था। इतने में आकाश से एक देव ने कहा—'देवानुप्रिय ! कल तुम्हारे नगर में महामाहन आने वाले हैं। वे त्रिकालदर्शी जिन भगवान् हैं। तुम उनकी भलीभांति सेवा करना।' ___ सकडालपुत्र ने सोचा—'महामाहन जिन भगवान् तो मेरे धर्माचार्य गोशालक ही हैं। लगता है, वे यहाँ कल आयेंगे। बहुत प्रसन्नता की बात है। मैं उनकी सेवा करूंगा।'

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