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जैन कथा कोष ३१३
संख्या में मारने के लिये इकट्ठा किये रखता । उन्हें मारकर मांस बेचता । औरों से मरवाकर मांस खरीदता । वह मांस का बहुत बड़ा क्रेता-विक्रेता था । पशुओं का वध करने में उसे तनिक भी संकोच नहीं होता। यों पापों में रत रहकर सात सौ वर्ष की आयु में वहाँ से मरकर वह चौथी नरक में गया । वहाँ से निकलकर वह इस नगर में 'सुभद्र' सेठ का पुत्र 'शकट कुमार' हुआ है। कोढ़ में खुजलाहट हुआ ही करती है। 'शकटकुमार' के माता-पिता बचपन में मर गए । अब इसे रोकने-टोकने वाला कौन ? धीरे-धीरे वह सभी दुर्व्यसनों में लिप्तं हो.. गया। नगर का प्रमुख जुआरी, व्यभिचारी तथा चोर कहलाने लगा तथा धीरेधीरे सुदर्शना वेश्या के प्रेम में वह फंस गया। सुदर्शना और शकट के प्रेम का महामात्य सुषेण को पता लग गया। अमात्य ने शकट को धक्के देकर निकाल दिया और सुदर्शना को अपने यहाँ महलों में बुलवा लिया। शकट फिर भी नहीं संभला । मौका लगाकर वेश्या के पास वह पहुँच ही गया। प्रधान ने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया। फिर क्या था ? प्रधान ने राजा से कहा - 'इसे कठोर से कठोर दण्ड दिया जाये ।' बस, राजा और प्रधान के आदेश से उनके नाक-कान काटकर तर्जना देते हुए वधभूमि में ले जाकर मारने का आदेश हो गया । गौतम, तुम उन्हीं दोनों को देख आये हो ।'
बात को आगे बढ़ाते हुए भगवान् ने कहा—वह शकट कुमार अपनी ५७ वर्ष की आयु में आज तीसरे पहर में लोह की गर्म भट्टी में होमे जाने के कारण मृत्यु को प्राप्त करेगा। आर्त- रौद्रध्यान में मरकर प्रथम नरक में पैदा होगा । अनन्तकाल तक संसार में परिभ्रमण करता रहेगा। अन्त में कर्म - रहित होगा ।
- विपाक सूत्र ४
जन्म स्थान पिता
माता
जन्म-तिथि.
१८२. शान्तिनाथ भगवान्
सारिणी
ज्येष्ठ
ग़जपुर दीक्षा तिथि
विश्वसेन
अचिरा
कृष्णा १३.
चारित्र पर्याय केवलज्ञान तिथि
निर्वाण तिथि
ज्येष्ठ कृष्णा १४
२५ हजार वर्ष पौष शुक्ला ६ ज्येष्ठ कृष्णा १३