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३०८ जैन कथा कोष किया। ये भगवान् के तीसरे गणधर थे। ४३ वर्ष की आयु में दीक्षित हुए। दस वर्ष छदमस्थ रहे। अठारह वर्ष केवलीवस्था में रहे। अपनी सत्तर वर्ष की आयु में निर्वाण प्राप्त किया।
—आवश्यकचूर्णि
१७७. वासुपूज्य भगवान् जन्म-स्थान
- चम्पा केवलज्ञान तिथि माघ शुक्ला २ माता
वसुपूज्य निर्वाण तिथि आषाढ़ शुक्ला १४ पिता
जया चारित्र पर्याय ५४ लाख वर्ष जन्म-तिथि फाल्गुन कृष्णा १४ कुल आयु ७२ लाख वर्ष कुमार अवस्था १८ लाख वर्ष चिह्न
___महिष दीक्षा तिथि फाल्गुन कृष्णा ३०
भगवान् ‘वासुपूज्य' 'चम्पानगरी' के महाराज 'वासुपूज्य' की महारानी 'जयादेवी' के आत्मज थे। ये दसवें प्राणत स्वर्ग से च्यवन करके माता के उदर में आए। चौदह स्वप्नो से सूचित करने पर तीर्थंकर होंगे, ऐसा सबका विश्वास था। फाल्गुन बदी चौदह को भगवान् का जन्म हुआ। युवावस्था मे महाराज वासुपूज्य ने इन्हें विवाह के लिए तथा राजसिंहासन स्वीकार करने के लिए कहा। किन्तु प्रभु ने स्वीकार नहीं किया। बाल ब्रह्मचारी ही रहे।' लोकांतिक देवों द्वारा विधि का परिपालन होने के बाद वर्षीदान दिया। सात सौ राजाओं के साथ दो दिन के व्रत में फाल्गुन बदी अमावस्या के दिन प्रभु संयमी बने। भगवान् ‘वासुपूज्य' के समय में ही दूसरा वासुदेव 'द्विपृष्ठ', बलदेव 'विजय' तथा प्रतिवासुदेव 'तारक' हुआ। प्रभु एक महीना छद्मस्थ रहे। दो दिन के व्रत में केवलज्ञान प्राप्त करके तीर्थ की स्थापना की। प्रभु के 'सूक्ष्म' आदि ६६ गणधर थे। __अपना मोक्षकाल निकट जानकर प्रभु 'चम्पानगरी' में पधारे और छ: सौ मुनियों के साथ अनशन स्वीकार कर लिया। एक महीने के अनशन में प्रभु ने निर्वाण प्राप्त किया। वासुपूज्य भगवान् का आयुष्य बहत्तर लाख वर्ष का था। ये वर्तमान चौबीसी के बारहवें तीर्थंकर हैं।
१. आचार्य श्रीलांक का मत है विवाह किया-चउपन्न महा. पृ. १०4