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गणधर केवली साधु केवली साध्वी मनः पर्यवज्ञानी अवधिज्ञानी पूर्वधर
जैन कथा कोष ३०६ धर्म-परिवार ६६ वादलब्धिधारी
४७०० ६००० वैक्रियलब्धिधारी
१०,००० १२,००० साधु
७२,००० ६००० साध्वी
१,०३,००० ५४०० श्रावक
२,१५,००० १२०० श्राविका
४,३६,००० -त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र
१७८. विजय-विजया कच्छ देश में श्रेष्ठी अर्हद्दास रहता था। उसकी पत्नी का नाम अर्हद्दासी था। उनके पुत्र का नाम था—विजय । यह पूरा परिवार ही सदाचारी, धर्मनिष्ठ और श्रमणोपास था। एक बार एक मुनि का उपदेश सुनकर विजय ने आजीवन शुक्ल पक्ष में ब्रह्मचर्य-पालन का नियम ले लिया।
विजय का विवाह हुआ कच्छ देश के एक अन्य श्रेष्ठी धनावह की पुत्री विजया के साथ। विजया ने भी विवाह से पहले ही एक साध्वी के मुख से ब्रह्मचर्य की महिमा सुनकर कृष्णपक्ष में आजीवन ब्रह्मचारिणी रहने का नियम ले लिया था।
इन दोनों के इन नियमों से इनके परिवार वाले अनभिज्ञ थे।
प्रथम रात्रि को जब विजय-विजया मिले, तब दोनों एक-दूसरे के नियम की बात मालूम हुई। यह जानकर कि विवाहित जीवन में भी आजन्म ब्रह्मचारी रहना पड़ेगा, इन दोनों के मन में तनिक भी खेद न हुआ। दोनों ने ही नियम वाली बात को गुप्त रखने का निश्चय कर लिया साथ ही यह भी निश्चय किया कि जब हमारा रहस्य (ब्रह्मचर्य-पालन का नियम) परिवारी जनों के समक्ष प्रकट हो जायेगा, उसी समय हम दोनों दीक्षा ले लेंगे। इस प्रकार दृढ़ निश्चय करके दोनों साथ-साथ रहने लगे।
दोनों एक ही कक्ष में रहते, एक ही शय्या पर सोते, अन्य सभी जनों की दृष्टि में विवाहित जीवन बिताते, लेकिन वास्तविकता यह थी कि वे दोनों मनवचन-काय से स्वप्न में भी अपने ब्रह्मचर्य को खण्डित न करते। किसी को