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जैन कथा कोष ३०५
मँगाकर सेठ के सामने रख दिया।
सेठ ने सबके सामने कार्य का बँटवारा करते हुए कहा—सबसे बड़ी पुत्रवधु उज्झिता फेंकने में बहुत चतुर है। इसलिए घर की सफाई का काम इसे सौंपा जाता है, ताकि कूड़े-कचरे को अच्छे ढंग से बाहर फेंकती रहेगी।
दूसरी भोगवती खाने में बहुत चतुर है, इसलिए रसोई का काम इसे सौंपता हूँ, क्योंकि यह भोजन चख-चखकर अच्छा बनायेगी। तीसरी रक्षिता वस्तु को सुरक्षित रखने में बहुत दक्ष है, अतः भण्डार की चाबियाँ इसे सौंपता हूँ। यह उसे बिल्कुल सुरक्षित रखेगी। चौथी रोहिणी वस्तु को बढ़ाने में चतुर है, अतः पारिवारिक उत्तरदायित्व का सम्पूर्ण भार इसे सौंपता हूँ। यह मेरे परिवार की श्रीवृद्धि विशेष रूप से करती रहेगी।
सेठ के निर्णय से सभी पुलिकत हो उठे। सभी ने माना—योग्यता के आधार पर कार्य का बँटवारा किया गया है। रोहिणी को सुयोग्य मानकर सारा भार सौंपा गया।
-ज्ञातासूत्र ७.
१७४. रोहिणेय चोर राजगृही नगर के बाहर पाँच पर्वत थे—वैभारगिरि, विपुलगिरि, उदयगिरि, सुवर्णगिरि और रत्नगिरि | उनमें वैभारगिरि पर्वत की एक गुफा में रोहिणेय चोर रहता था। चोरी करने का पुश्तैनी धन्धा था। एक बार उसके पिता ने अपने अन्तिम समय में पुत्र को शिक्षा देते हुए कहा—'महावीर नाम का एक व्यक्ति है। वह बहुत ही प्रभावशाली धर्मोपदेशक है। पर तुम उसका उपदेश कभी मत सुनना। जिस रास्ते में वह हो, उस मार्ग में भी मत जाना। क्योंकि उसके उपदेश से हमारे कार्य में बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है। इसलिए मेरी इस शिक्षा का विशेष रूप से ध्यान रखना।' ___ पिता की शिक्षा का रोहिणेय पूरा-पूरा ध्यान रखने लगा। महावीर का नाम सुनते ही वहाँ से दूर चला जाता। ___ एक बार ऐसा प्रसंग आया कि प्रभु उद्यान में उपदेश दे रहे थे। रोहिणेय अकस्मात् वहाँ आ पहुँचा। उसके बीच में से होकर जाने के सिवाय अन्य कोई रास्ता नहीं था। महावीर की बात सुनाई न पड़ जाए इसलिए कानों में अंगुली डालकर उधर से दौड़ा—यह सोचकर कि जल्दी से जल्दी यहाँ से चला जाऊँ।