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जैन कथा कोष ३०३
१७२. रेवती
'रेवती' 'मींढा' गाँव में रहने वाली एक धनाढ्य सेठ की पत्नी थी। जैनशासन प्रति उसकी बहुत अधिक निष्ठा थी । भगवान् महावीर की परम उपासिका
थी ।
भगवान् महावीर के तीर्थंकर अवस्था के चौदहवें वर्ष में जब गोशालक का उपसर्ग हुआ, उस समय गोशालक ने प्रभु के शरीर को तेजोलेश्या से जलाने का प्रयत्न किया था । वह तीव्रतम तेजोलेश्या भी प्रभु के शरीर के अन्दर नहीं घुस सकी, पर परिताप अवश्य लगा। उसके परिताप से छ: महीनों तक पेचिश के दस्त प्रभु को लगते रहे । उस रोग को मिटाने हेतु प्रभु ने सिंह मुनि से कहा— 'सिंह ! तुम रेवती के यहाँ जाओ। उसके यहाँ दो तरह के पाक हैं। एक है कूष्माण्ड पाक । वह उसने मेरे लिए बनाया है, और हमें अकल्प्य है इसलिए उसे मत लाना। उसके यहाँ ही दूसरा है विजोरापाक, जो उसने अपने घोड़े के लिए बनाया है, वह ले आओ। '
सिंह मुनि रेवती के यहाँ गए। रेवती मुनि को देखकर परम प्रसन्न हुई । मुनि ने जब पाक की याचना की तब वह कूष्माण्ड पाक देने लगी। मुनि ने उसे अग्राह्य बताकर विजोरा पाक देने के लिए कहा। रेवती ने बहुत ही चढ़ते भावों से मुनि को वह पाक दिया। भावना इतनी तीव्र थी कि उसी तीव्रता के कारण तीर्थंकर नामकर्म का बन्ध कर लिया। पाक के सेवन से भगवान् का शरीर निरोग हुआ । रेवती गृहस्थधर्म का परिपालन कर स्वर्ग में गई । - भगवती, १५
१७३. रोहिणी
राजगृही में रहने वाले ‘धन्ना सार्थवाह' के चार पुत्र थे- धनपाल, धनदेव, धनगोप और धनरक्षित । इन चारों की पत्नियों के नाम थे— उज्झिता, भोगवती, रक्षिता और रोहिणी ।
धन्ना सार्थवाह का जीवन सानन्द चल रहा था । एकदा सार्थवाह के मन में आया—लोग मुझे मेरे परिवार में अग्रगण्य गिनते हैं। सारे कार्य मुझे पूछकर करते हैं। मेरी राय का सम्मान करते हैं। परन्तु मेरे पीछे इस परिवार की व्यवस्था किसको सौंपनी चाहिए? कौन ऐसा है जो किसी को गलत रास्ते पर