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जैन कथा कोष २६३ ५. राजा अदीनशत्रु मल्लिकमारी के छोटे भाई दिन्न ने अपने अन्त:पुर में चित्रशाला बनवाई। उन चित्रकारों में एक युवा चित्रकार था, जिसे चित्रकला में विशेष लब्धि प्राप्त थी कि वह किसी भी वस्तु या व्यक्ति का एक छोटा-सा अंग देखकर ही उसका हूबहू चित्र बना सकता था। एक दिन उसने पर्दे में बैठी मल्लिकुमारी के पाँव का अंगूठा देख लिया। उस अंगूठे के आधार पर उसने 'मल्लि' का पूरा चित्र तैयार कर दिया।
मल्लदिन्न ने चित्रशाला में पहुँचकर जब उस चित्र को देखा तो उसे यह लगा कि यह तो मेरी बड़ी बहन बैठी है। प्रणाम करने लगा। तब पास खड़ी धायमाता ने कहा—कुमार, यह तो चित्र मात्र है। यह बहन कहाँ है? · अस्थान पर ऐसा चित्र बनाने के कारण कुमार चित्रकार पर क्रूद्ध हो उठा
और उसे वध करने का आदेश दे दिया। जब उसने बहुत अनुनय-विनय किया तब उसके सारे उपकरणों को तोड़कर उसे देश से निकाल दिया। __वह युवा चित्रकार हस्तिनापुर के राजा 'अदीनशत्रु' की शरण में चला गया। राजा ने उसके आगमन का कारण पूछा तो उसने सारी घटना सुनाते हुए कुमारी 'मल्लि' के सौन्दर्य की बहुत-बहुत प्रशंसा की।
राजा मल्लिकुमारी के प्रति आकर्षित हो गया और उसने अपने विवाह का प्रस्ताव लेकर दूत को महाराज 'कुंभ' के पास भेजा।
६. राजा जितशत्रु एक बार 'चेक्खा' नाम की परिव्राजिका 'मल्लि' के भवन में आयी। वह चारों वेद और अनेक शास्त्रों में पंडिता थी। वह दानधर्म और शौचधर्म का निरूपण करती थी।
वह भगवती मल्लि के महल में आकर अपने शौचधर्म की उत्तमता बताने लगी। भगवती मल्लि ने शौचधर्म की निस्सारता बताकर उसे पराजित कर दिया। परिव्राजिका कुपित होकर 'कांपिल्यपुर' के राजा 'जितशत्रु' की शरण में चली गई। ___ राजा ने कहा--तुम देश-देशांतरों में घूमती हो। क्या कहीं तुमने हमारे अन्तःपुर की रानियों जैसा रूप-लावण्य देखा है?