________________
२० जैन कथा कोष ... प्रयत्न किया परन्तु पल्ले पड़ी निराशा । अन्ततः महावेदना भोगता हुआ मरकर प्रथम नरक में गया।
प्रथम नरक से निकलकर वह 'इकाई राठोर' का जीव 'मृगा' ग्राम में 'विजय' क्षत्रिय की रानी 'मृगावती' के उदर में आया। जिस दिन यह जीव 'मृगावती' के गर्भ में आया, उसी दिन से 'मृगावती' के प्रति 'विजय' क्षत्रिय का प्रेम कम हो गया। 'मृगावती' ने यह सारा गर्भ का प्रभाव माना। सोचाहो न हो कोई पापात्मा मेरे गर्भ में आयी है। गर्भ के योग से उसे पीड़ा भी अधिक रहने लगी। रानी ने गर्भ को गिराने, नष्ट करने के लिए अनेक औषधोपचार किये। पर पापी ऐसे नष्ट थोड़े ही होते हैं। रानी उदासीन बनी गर्भ का पालन करने लगी।
गर्भावस्था में ही शिशु को भस्मक रोग हो गया। वह जो भी खाता वह उसके तत्काल रक्त हो जाता । नौ महीने में पुत्र जन्मा । नाम 'मृगापुत्र' दिया। परन्तु था जन्म से ही अन्धा, बहरा, गूंगा तथा अंगोपांग के आकार से रहित । इन्द्रियों के मात्र चिह्न ही थे। ऐसे भयानक बालक को देखकर रानी भयभीत हो उठी। कूरड़ी पर उसे फिंकवाने का विचार कर लिया। पर जैसे-तैसे रानी के मनोभावों का राजा को पता गल गया। राजा ने रानी से कहा—'देख, ऐसा काम नहीं करना चाहिए। यह पहला बालक है। इसे मारने से अन्य बालक भी जीवित नहीं रहेंगे। इसलिए इसका लालन-पोषण कर।'
पति की आज्ञा मानकर रानी उस बालक को एक भौंयरे (तलघर) में डाले रखती। प्रतिदिन उसे वहाँ भोजन दे देती । बालक जो भी भोजन करता उसके दुर्गन्धमय पदार्थ ही बनते थे। नरक के समान भयंकर वेदना को भोगता हुआ वहाँ वह रह रहा था। ____ एक बार भगवान् महावीर उसी 'मृगा' गाँव के चन्दनपादप नाम के उपवन में पधारे। विजय राजा भी दर्शनार्थ आया। उसी गाँव का एक जन्मांध भिखारी, जिसके ऊपर हजारों मक्खियाँ भिनभिना रही थीं, वह अपने किसी सज्जन साथी के सहारे प्रभु के दर्शनार्थ आया था। प्रभु ने सभी को धर्मोपदेश दिया। धर्मोपदेश सुनकर सभी अपने-अपने स्थान को गए। ___ गौतम स्वामी ने भगवान् महावीर से पूछा-'प्रभु ! उस जन्मांध व्यक्ति की भांति अन्य किसी स्त्री ने भी ऐसे किसी बालक को जन्म दिया है?' भगवान् ने कहा—'मृगा रानी ने इससे भी अधिक भयावने पुत्र को जन्म दिया है।