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३०० जैन कथा कोष प्रलोभन दिये। परन्तु सीता ने अपने सतीत्व पर तनिक भी आंच न आने दी। राक्षस के चंगुल में रहकर भी बिलकुल बेदाग रही। 'राम' और 'लक्ष्मण' ने 'सुग्रीव' और 'हनुमान' के द्वारा खोज कराई और भारी सेना के साथ वहाँ गये। भीषण युद्ध हुआ। अन्त में राजा 'रावण' की मृत्यु 'लक्ष्मण' के हाथ से हुई। 'रावण' आठवां प्रति-वासुदेव था। 'रावण' को मारकर लक्ष्मण' आठवें वासुदेव बने । 'राम' ने लंका का राज्य 'विभीषण' को दे दिया। इसके बाद 'सीता' को लेकर अनेक राजाओं के साथ 'राम-लक्ष्मण' अयोध्या में आये । वहाँ आने पर 'राम' के आठवें बलदेव के पद का तथा लक्ष्मण' के आठवें वासुदेव के पद का अभिषेक हुआ।
जब लक्ष्मण का आकस्मिक देहान्त हो गया, तब श्री राम छ: महीनों तक लघु-बन्धु-बिछोह का दुःख करते रहे। उनके मोह में अपना भान भूल बैठे। फिर सेनापति देव के द्वारा प्रबुद्ध करने पर संयम स्वीकार किया। श्री 'राम' जब क्षपक-श्रेणी चढ़ने लगे तब सीतेन्द्र (महासती 'सीता' का जीव जो संयम लेकर बारहवें स्वर्ग का स्वामी हुआ था) ने वहाँ आकर विविध प्रकार के मोहक, कामुक और आकर्षक दृश्यों की विकुर्वणा की। 'सीतेन्द्र' चाहता था— श्री 'राम' मोक्ष में न जाकर मेरे यहाँ आ जायें तो हम मित्र बनें । वहाँ आनन्द करें। पर श्री 'राम' अविचल रहे । केवलज्ञान प्राप्त कर लिया। पन्द्रह हजार वर्ष की आयु में श्री 'राम' ने निर्वाण प्राप्त किया।
__ श्रीराम का जन्म का नाम पद्म है, किन्तु वे राम के नाम से ही सर्व विश्रुत हुए। राम की कथा भारतीय संस्कृति में बहुत विश्रुत है। अनेक भाषाओं में रामायण लिखी गई है। यह राम की अधिक लोकप्रियता का परिचायक है।
-त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र, पर्व ७
१७०. रावण भगवान् 'मुनिसुव्रत' के शासन-काल में दक्षिण भारत में 'लंका' नगरी में राजा 'रावण' का जन्म हुआ। इसके पिता का नाम 'रत्नश्रवा' और माता का नाम 'केकसी' था। रावण के दो भाई, एक बहन और भी थी जिसका नाम 'कुंभकर्ण', 'विभीषण' तथा बहन चन्द्रनखा था, किन्तु यह सूर्पणखा के नाम से ही अधिक प्रसिद्ध हुई।