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जैन कथा कोष २६६ १६६. राम-लक्ष्मण 'राम' और 'लक्ष्मण' भगवान् 'मुनिसुव्रत' के शासन-काल में होने वाले जैनजगत् के सुप्रसिद्ध आठवें बलदेव और वासुदेव थे। ये दोनों 'अयोध्या' के सूर्यवंशी महाराज 'दशरथ' के पुत्र थे। 'श्रीराम' की माता का नाम 'कौशल्या' तथा 'लक्ष्मण' की माता का नाम 'सुमित्रा' था। महाराज 'दशरथ' के दो पुत्र
और भी थे जिनमें एक 'कैकेयी' का पुत्र 'भरत' तथा दूसरा 'सुप्रभा' का पुत्र 'शत्रुघ्न' था।
राम और लक्ष्मण का प्रेम अधिक विश्रुत है। बड़े होने पर 'राम' का विवाह 'मिथिला' के महाराज 'जनक' की राजकुमारी 'सीता' के साथ हुआ।
राजा दशरथ ने दीक्षा लेकर आत्म-कल्याण करने का विचार किया। उनके साथ ही भरत ने भी संयम लेने की इच्छा प्रकट की। कैकेयी पति और पुत्रदोनों के वियोग को सहन करने में असमर्थ पाकर भान भूल बैठी। जब 'राम' का राज्याभिषेक होने ही वाला था, उस समय राजा दशरथ को उनके द्वारा दिये गये वचन की याद दिलाते हुए कहा—'आप संयम ले रहे हैं तो मैं चाहती हूँ मेरे पुत्र को राज्य-पद दिया जाए।' इस मांग का रहस्य सिर्फ इतना-सा था कि राज्य-भार पड़ने से भरत संयम नहीं ले सकेगा और कैकेयी को एक साथ पति एवं पुत्र—दोनों का वियोग नहीं सहना पड़ेगा।
राजा दशरथ भरत को राज्य-पद देने को तैयार हो गये। लेकिन भरत तो राज्य से निस्पृह थे। उन्होंने साफ-साफ कह दिया—बड़े भाई राम के रहते मैं किसी भी मूल्य पर राज्य नहीं करूंगा।
'राम' ने तत्क्षण भरत के इस शब्द को पकड़कर कहा—यह मेरे रहते राज्य नहीं करेगा तो मैं वन को जाता हूँ। तुम यहाँ रहकर राज्य करो। यों 'राम' ने स्वयं ही बनवास ले लिया। सती 'सीता', लघु भाई 'लक्ष्मण' भी साथ गये। पीछे से 'दशरथ' ने संयम ग्रहण कर निर्वाण प्राप्त किया। 'भरत' निस्पृह रहकर शासन संचालन करने लगे।
वनवास में एक जगह 'लक्ष्मण' के हाथ से 'सूर्पणखा' के पुत्र 'शंबूक' का अनजाने में वध हो गया। 'सूर्पणखा' के बहकाने से लंका नगरी का स्वामी 'रावण' 'सीता' को लेने आया। 'शंबूक' के पिता खर आदि के साथ युद्ध छिड़ा। लक्ष्मण' और 'राम' उधर चले गये। अकेली देखकर सीता को राजा रावण चुराकर लंका ले गया। रावण ने सीता को अपनी पटरानी बनाने के बहुत