________________
जैन कथा कोष २८६
जब मेतार्य सोलह वर्ष का हो गया, तब राजपुत्र वाले देव ने अपने वचन के अनुसार उसे स्वप्न में प्रतिबोध दिया, लेकिन उसे प्रतिबोध लगा नहीं । उन्हीं दिनों सेठ ने मेतार्य का विवाह सम्बन्ध आठ श्रेष्ठि-कन्याओं से निश्चित कर दिया।
अब देव ने मेती के शरीर में प्रवेश किया और आठों श्रेष्ठियों के सामने मेतार्य के जन्म का रहस्य खोल दिया । चाण्डाल - पुत्र के साथ कोई सेठ अपनी पुत्री का विवाह कैसे करता ? परिणाम यह हुआ कि मेतार्य का विवाह-सम्बन्ध छूट गया और उसे श्रेष्ठी का घर छोड़कर चाण्डाल के घर जाना पड़ा।
जब देव ने उसे पुन: प्रतिबोध देने का प्रयास किया तो मेतार्य ने कहा— 'यदि मेरी खोयी हुई प्रतिष्ठा पुनः मिल जाए, राजा श्रेणिक मुझे अपना जामाता बना ले और श्रेष्ठी पुनः अपना पुत्र मान ले तो मैं दीक्षा लूंगा । '
देव ने मेतार्य की ये शर्तें भी स्वीकार कर लीं। उसने अपने देवशक्ति से चाण्डाल के घर एक बकरा बांध दिया, जो सोने की मींगणी (विष्ठा) करता था। ये मींगणियां मेतार्य के पिता मेहर चाण्डाल ने राजा श्रेणिक को भेंट कीं और अपने पुत्र के लिए उनकी पुत्री की याचना की। इस पर राजा श्रेणिक के पुत्र अभयकुमार ने यह शर्त रखी - यदि तुम राजगृह के चारों ओर सोने का परकोटा बनवा दो, वैभारगिरि पर पुल बाँध दो और उसके नीचे गंगा, यमुना, सरस्वती तथा क्षीर सागर का जल प्रवाहित कर दो, फिर उसमें स्नान करके तुम्हारा पुत्र पवित्र हो जाए तो उसे राजकन्या मिल सकती है ।
यद्यपि यह शर्त असम्भव थी, किन्तु देवशक्ति के कारण सम्भव हो गई । मेतार्य को राजकन्या मिल गई। श्रेष्ठी ने उसे अपना पुत्र मान लिया और उसकी खोयी हुई प्रतिष्ठा से अधिक प्रतिष्ठा उसे मिल गई ।
अब देव ने मेतार्य से चारित्र ग्रहण करने को कहा तो उसने बारह वर्ष तक गृहस्थ-सुख भोगने की इच्छा प्रकट की । बारह वर्ष बाद जब देव पुनः आया तो मेतार्य की पत्नी ने बारह वर्ष का समय मांग लिया ।
इस प्रकार चौबीस वर्ष तक गृहस्थ-सुख भोगने के बाद मेतार्य ने भगवान् महावीर से दीक्षा ग्रहण कर ली और मुनि मेतार्य बन गये। नौ पूर्वी का अध्ययन किया और जिनकल्प स्वीकार करके एकल विहारी बन गये । एक बार मेतार्य मुनि विहार करते हुए राजगृही आए । मासखमण के