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जैन कथा कोष २६३
थे । प्रतिभाशाली, प्रत्युत्पन्नमति तथा अनेक विद्याओं के अधिकारी विद्वान थे । ३५० शिष्यों के अध्यापक थे । इतना सब कुछ होते हुए भी इनके मन में सन्देह था— 'बंध और मोक्ष है या नहीं? है तो कैसे और क्यों है?' इस शंका का समाधान भगवान् महावीर ने किया। शंका का समाधान पाते ही अपने शिष्यों सहित इन्होंने संयम ले लिया । प्रभु के शिष्य बन गये । ५४ वर्ष के आयु में इन्होंने संयम स्वीकार किया। चौदह वर्ष छद्मस्थ रहे । अड़सठवें वर्ष में केवलज्ञान प्राप्त किया । सोलह वर्ष केवली रहकर ८३ वर्ष की आयु पूर्ण करके निर्वाण प्राप्त किया ।
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- आवश्यकचूर्णि
१६७. यवराजर्षि
यवपुर नामक सुन्दर नगर के राजा थे यव । उनकी रानी का नाम धारिणी था । धारिणी ने एक पुत्र और पुत्री को जन्म दिया । पुत्र का नाम गर्दभिल्ल रखा गय और पुत्री का नाम अणोलिका (अणुल्लिया) । राजा के मंत्री का नाम दीर्घपृष्ठ था ।
एक बार राजा यव अपनी राजसभा में बैठे थे और उनकी गोद में थी अणुल्लिया । उस समय एक नैमित्तिक आया । अणुल्लिया के लक्षण देखकर उसने भविष्यवाणी की कि इस कन्या का पति बहुत बड़ा राजा बनेगा ।
अभी गर्दभिल्ल बालक ही था कि चतुर्ज्ञानी मुनि अभिधान सूरि के उपदेश से राजा यव प्रतिबुद्ध हो गये। उन्होंने बालक गर्दभिल्ल का राज्याभिषेक किया, शासन - सूत्र मंत्री दीर्घपृष्ठ को दिया और प्रव्रजित हो गये ।
यवराजर्षि में संयम-साधना तथा सेवा वैयावृत्त्य के प्रति बहुत उत्साह था, लेकिन शास्त्र- स्वाध्याय के बारे में उनके मन-मस्तिष्क में यह भ्रम प्रवेश कर गया था कि उम्र अधिक होने से याद नहीं हो सकेगा। इसलिए ज्ञानार्जन के प्रति वे उत्साहशील नहीं थे। उनके इस भ्रम को निकालने और ज्ञानार्जन में रुचि जागृत करने के लिए आचार्य ने एक उपाय सोचा — उन्हें यवपुरवासियों को धर्मोपदेश देने भेज दिया ।
गुरु-आज्ञा मानकर यवराजर्षि चल दिये। मार्ग में विश्राम हेतु एक वृक्ष की शीतल छाया में बैठे। सामने जौ का खेत लहलहा रहा था । किसान अपने खेत की रखवाली कर रहा था । पास ही खड़ा एक गधा जौ खाने को ललचा रहा