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जैन कथा कोष २८३ मेरा पुत्र 'उदयन' बालक है। अतः इसकी रक्षा का भार मैं महाराज 'प्रद्योत' को सौंपती हूँ।' यों कहकर उसने अपने पुत्र उदयन को 'प्रद्योत' को सौंप दिया
और 'प्रद्योत' से कहा—'आप मेरे पिता-तुल्य हैं। मुझे आज्ञा दीजिए, मैं संयम लेकर अपना कल्याण कर सकू।'
'प्रद्योत' ने सहर्ष आज्ञा दी। 'मृगावती' ने संयम ग्रहण कर लिया। 'प्रद्योत' 'उदयन' को कौशाम्बी के सिंहासन पर बैठाकर मन-ही-मन 'मृगावती' के कारनामों पर आश्चर्य करता हुआ 'उज्जयिनी' चला गया। ___एक बार भगवान् महावीर के समवसरण में सती 'मृगावती', साध्वी शेखरा 'चन्दनबाला' के साथ बैठी थी। उसी समय सूर्य-चन्द्र दोनों प्रभु के दर्शनार्थ आये। 'चन्दनबाला' आदि सतियां यथासमय अपने स्थान पर चली गईं। पर प्रकाश होने से 'मृगावती' को समय का ध्यान नहीं रहा। सूर्य-चन्द्र के चले जाने पर जब अकस्मात् अंधेरा छाया तो 'मृगावती' को ज्ञान हुआ। वह अपने स्थान पर आयी। आर्यश्रेष्ठा 'चन्दनबाला' ने इस अक्षम्य भूल के लिए 'मृगावती' को उलाहना दिया। 'मृगावती' ने अपनी भूल के लिए 'चन्दनबाला' से क्षमायाचना की। आर्यश्रेष्ठा 'चन्दनबाला' सो गई। 'मृगावती' मन-ही-मन अपनी भूल का पश्चात्ताप करने लगी। भावना का वेग इतना बढ़ा कि सहसा क्षपकश्रेणी चढ़कर केवलज्ञान प्राप्त कर लिया। ___ 'मृगावती' ने ज्ञानबल से देखा—लेटी हुई महासती 'चन्दनबाला' के हाथ के पास से एक सांप जा रहा था। 'मृगावती' ने तत्काल महासती 'चन्दनबाला' का हाथ ऊपर कर दिया। हाथ के उठाने से 'चन्दनबाला' की नींद खुल गई। नींद से जागने का कारण पूछा तो 'मृगावती' ने सांप वाली बात कही। 'चन्दनबाला' ने कहा-'अंधेरी रात में तुम्हें कैसे पता लगा?
'मृगावती'_'आपके प्रताप से'। 'चन्दना'' क्या कोई विशिष्ट ज्ञान हुआ है?' 'मृगावती'-आपकी कृपा है।' 'चन्दना'-क्या केवलज्ञान हुआ है?' 'मृगावती'-'आपकी कृपा का ही सारा फल है।'
'चन्दनबाला' ने सोचा—'मैंने केवली की आशातना की। नींद खुलने से मुझे भी आवेश आ गया जो नहीं आना चाहिए था। सती 'मृगावती' ने फिर भी कितनी समता का परिचय दिया।' यों अर्तमुखी चिन्तन करते-करते