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जैन कथा कोष २६७ "तुम मुँह क्यों बिगाड़ रहे हो? देखो जिस मूर्ति में प्रतिदिन भोजन का एक-एक कौर डाला गया है, उसमें इतनी दुर्गन्ध आ रही है, तो जिस मेरे शरीर पर तुम आसक्त बने हो वह तो अशुचिमय है ही। दुर्गन्धित पदार्थों से यह पैदा ही हुआ है। उस पर लुभाने जैसी वस्तु वहाँ क्या है? सोचो तो सही, इस भोगपिपासा को छोड़ो। आसक्ति से दूर हटो। ध्यान दो। इससे तीसरे भव में मैं 'महाबल' थी। तुम सब छहों मेरे मित्र थे। हम सब समानवय वाले थे। साथ ही जन्मे थे, साथ-साथ रहे थे, संयमी भी साथ-साथ बने, तप:साधना भी एक समान ही करने को वचनबद्ध थे। पर मैंने वहाँ तपस्या में कुछ माया का व्यवहार किया.। फलस्वरूप यहाँ स्त्री के रूप में पैदा हुई हूँ। हम सब वहाँ से 'जयन्त' विमान में गए। वहाँ से यहाँ आये हैं। मेरे पर माया की कुटिल छाया पड़ी, जिससे मैं यहाँ 'मल्लिकुमारी' बनी हूँ। तुम छहों में एक 'साकेत' नगर का स्वामी 'प्रतिबुद्ध' हुआ है। एक 'अंग' देश का स्वामी 'चन्द्रछाया' हुआ है। एक 'काशीराज' 'शंख' बना है। एक कुणालाधिापति 'रूपी' हुआ है। एक 'कुरुराज' 'अदीनशत्रु' हुआ है तथा एक 'पांचाल' देश का स्वामी 'जितशत्रु' हुआ है। तुम्हें याद है न, हमने 'जयन्त' विमान में संकल्प किया था कि जो मृत्युलोक में पहले प्रतिबुद्ध हो, उसे दूसरों को भी समझाना है तथा सभी के साथ ही संयम लेना है। मैंने अपने वचन के निर्वाह के लिए यह सब कुछ किया है। तुम लोग अब भी समझो। ___ छहों राजाओं ने जब 'मल्लिकुमारी' के मुँह से यह सब कुछ सुना तो चिन्तन में सराबोर हो उठे। उन्हें जातिस्मरणज्ञान हो गया। अपना पूर्वजन्म अब उन्हें स्पष्ट दीखने लगा। अब सब के सब उस गुप्त गृह में 'मल्लिकुमारी' के पास में पहुँचे । 'मल्लिकुमारी' ने स्पष्ट कहा—मैं संसार से मुक्त होना चाहती हूँ। बोलो, तुम लोगों की क्या इच्छा है?
सभी ने अपने-अपने पुत्रों को राज्य का भार सौंपकर अपने किये हुए प्रण के अनुसार संयम लेने की भावना व्यक्त की। _ 'मल्लिकुमारी' ने वर्षीदान देकर पंचमुष्टि लोच किया। 'सहस्र' वन उद्यान में 'अशोक' वृक्ष के नीचे संयम स्वीकार कर लिया। प्रभु के साथ में छ: सौ स्त्रियाँ तथा आठ सौ राजकुमारों ने दीक्षा ली। छहों राजाओं ने भी संयम लेकर
१. तीन सौ स्त्रियाँ तथा तीन सौ पुरुष थे, ऐसा भी कई मानते हैं। मल्लिनाथ भगवान्
का जैन जगत् के इतिहास में एक महान् आश्चर्यकारी वृत्तान्त है।