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गणधर केवली साधु केवली साध्वी मन:पर्यवज्ञानी अवधिज्ञानी पूर्वधर
जैन कथा कोष २७७
२७७ धर्म-परिवार १८ वादलब्धिधारी
१२०० १८०० वैक्रियलब्धिधारी
२००० ३६०० साधु
३०,००० साध्वी
५०,००० १८०० श्रावक
१,७२,००० ५०० श्राविका
३,५०,००० __-त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र
१५००
१५८. मृगापुत्र
'मृगापुत्र' सुग्रीव नगर के महाराज 'बलभद्र' की महारानी 'मृगावती' का पुत्र था। सभी तरह सम्पन्नता में 'मृगापुत्र' का लालन-पालन हुआ। युवावस्था में अनेक राजकन्याओं से विवाह हुआ। वह भोगों में आसक्त बना जीवन बिता रहा था।
एक दिन अपने विशाल और सुन्दर महल के झरोखे से नगर की शोभा देख रहा था। इतने में एक मुनि कहीं जाते हुए दृष्टिगोचर हुए। मुनि का प्रशान्त मुखमण्डल, शान्तरस बरसाती आँखें देखकर 'मृगापुत्र' देखता ही रह गया। मन में आया-ऐसी मुद्रा मैंने कहीं देखी है। भावना ने करवट ली। चिन्तन करते-करते उसे जाति-स्मरणज्ञान हो गया। ज्ञान से देखा, ऐसे चारित्र का मैंने पूर्वभव में पालन किया था। सहसा संसार से अरुचि जगी। संयमी बनने का हृदय में दृढ़ संकल्प किया।
आज्ञा प्राप्त करने के लिए माता-पिता के पास आकर बोला—'मैंने अपना पूर्वभव देखा है। अनेक जन्मों में विविध गतियों में अनेक प्रकार के दुःख भोगे हैं। अब संयम का भली-भांति पालन करने से मनुष्य भव मिला है। महान पुण्य के सुयोग से प्राप्त किये हुए मनुष्य-जन्म को सांसारिक रंग-राग, मोह-माया में गँवाना नहीं चाहता। संसार के भोगों से मेरा मन उचट गया है। अतः आप मुझे संयम लेने की आज्ञा दीजिए। देखिए, जो सुख-सामग्री मुझे मिली है, यह नाशवान है, क्षणभंगुर है। सारा राज-वैभव, अनूठे ठाट, अपरिमित वैभव, धनधान्य, बाग-बगीचे, स्वर्ण-रजत, हीरे-पन्ने, परिजन-पुरजन—सारे-के-सारे यहीं रह जायेंगे। इस सबमें साथ जाने वाला कुछ भी नहीं है। अधिक क्या, यह