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जैन कथा कोष २७५ पर जब मांस के बिना नहीं रह सकी तब एक कुशल नौकर को बुलाकर कहा—'मेरे पीहर के गोकुल से दो बछड़ों को मारकर ले आओ।' नौकर गया
और लके-छिपे वहाँ से दो बछड़ों को मार लाया। 'रेवती' ने उन्हें पकाकर खा लिया। अब प्रतिदिन दो-दो बछड़ों का वध करवाकर खाने लगी।
इस सारी घटना का पता जब महाशतक को लगा तो उसके दिल में उसके प्रति घृणा हो आयी। फलस्वरूप वह धर्मध्यान में ही अधिक समय लगाने लगा। ___एक बार वह पौषधशाला में बैठा आत्मचिन्तन में लगा हुआ था, इतने में कामुक बनी 'रेवती' वहाँ आयी। विविध प्रकार की कुचेष्टाओं द्वारा कामयाचना की। पर महाशतक स्थिर रहा। अपनी पत्नी का यह हाल देखकर वह
और अधिक विरक्त बना। श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का वहन किया। अपने शरीर को दुर्बल हुआ देखकर अनशन स्वीकार कर लिया। अनशन में उसको अवधिज्ञान की प्राप्ति हुई। ___ अनशन में स्थित महाशतक के पास रेवती आयी तथा बहुत ही निर्लज्जतापूर्वक हाव-भाव दिखाने लगी, काम-कुचेष्टा करने लगी। तब 'महाशतक' को क्रोध आ गया। कटु शब्दों में भर्त्सना करते हुए 'महाशतक' ने रेवती से कहा—'मांसलोलुप रेवती ! थोड़े जीने के लिए क्यों अनर्थ में फंस रही है? देख, तेरी आयु अब सात दिन की ही शेष है। विशूचिका से मरकर तू प्रथम नरक में जाएगी। वहाँ चौरासी हजार वर्ष तक भयंकर यातना सहेगी।' महाशतक के आक्रोश-भरे वचन सुनकर रेवती बिल्कुल ही निढाल हो गई। मेरे पति ने मुझे शाप दिया–यों सोचकर अधिक दुखित हो उठी। अन्त में धर्मध्यान करती हुई सातवें दिन मरकर नरक में गई।
उन्हीं दिनों भगवान् ‘महावीर' राजगृही में पधारे । उन्होंने 'गौतम' स्वामी से सारी बात कहते हुए कहा—'महाशतक' ने रेवती को अनशन में ऐसे कटु शब्द कहे, जो उसे नहीं कहने चाहिए थे। तुम वहाँ जाओ और उससे कहो कि वह उन शब्दों का प्रायश्चित करे।
'गौतम' स्वामी ने वहाँ जाकर उसे प्रायश्चित कराया। 'महाशतक' ने सोचा–सत्य बात भी अप्रिय शब्दों में मुझे नहीं कहनी चाहिए थी। यों चिन्तन करता हुआ भगवान् महावीर का आभार माना और गौतम स्वामी से इस कष्ट के लिए क्षमायाचना करता हुआ गद्गद् हो उठा।