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जैन कथा कोष २७३ साढ़े छह महीनों में प्रभु ने तीन सौ उनचास दिन ही भोजन किया। शेष समय तपस्या में बिताया। यों घोर तप करके प्रभु ने वैशाख सुदी दशमी को जुम्भक ग्राम के बाहर ऋजुबालिका नदी के किनारे केवलज्ञान प्राप्त किया। उस समय प्रभु की अवस्था बयालीस वर्ष की थी।
जगत् की कल्याण-कामना को लेकर प्रभु ने तीर्थ की स्थापना की। __ अन्तिम चातुर्मास प्रभु ने 'हस्तिपाल' राजा की रथशाला में पावापुरी में बिताया। वहाँ बहत्तर वर्ष की आयु में कार्तिक कृष्णा तेरस को अनशन कर दिया। सोलह प्रहर के अनशन में अमावस्या की रात्रि में सकल कर्म क्षय करके मुक्त बने।
निर्वाण-कल्याण मनाने चारों ओर से देवताओं का आगमन हुआ। उस अँधेरी रात्रि में चारों ओर रत्नों का प्रकाश हो गया। इसलिए दीपमालिका का पर्व शुरू हुआ।
भगवान् 'महावीर' ने अपने साधनाकाल में बयालीस चातुर्मास किये। वे इस प्रकार हैं
१ अस्थिगाम में, २ भद्रिका नगरी में, ३ पृष्ठ चम्पा में, १ आलंभिका नगरी में, १२ वैशाली ग्राम में, १ सावत्थी नगरी में, १४ नालंदी राजगृही में, १ अपापा नगरी में, ६ मिथिला में, १ अनिश्चित स्थान में वर्तमान में भगवान् 'महावीर' का ही धर्मशासन चल रहा है।
'धर्म-परिवार गणधर ११ वादलब्धिधारी
४०० केवली साधु
७०० वैक्रियलब्धिधारी केवली साध्वी १४०० साधु
१४,००० मन:पर्यवज्ञानी ५००
३६,००० अवधिज्ञानी १३०० श्रावक
१,५६,००० पूर्वधर
३०० श्राविका
३,१८,००० . -त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र __ -आचारांग प्र., अ. ६
-कल्पसूत्र
७००
साध्वी ।