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२७० जैन कथा कोष का भाई हूँ। मेरे लिए तो कम से कम इतनी छूट दो। 'नमुचि' ने मुनि से तीन पैर जमीन मांगने के लिए कह दिया। फिर क्या था? 'विष्णुकुमार' मुनि ने लब्धि के योग से अपना विशाल रूप बना लिया। दो पैरों में ही चक्रवर्ती के सारे राज्य को नाप डाला। अब तीसरा पैर रखने को स्थान कहाँ था? फिर तो मुनि का विशाल रूप देखकर- सारे भयभीत हो उठे। चक्रवर्ती घबराया हुआ आया। अपने कृत कार्य की माफी चाही। यों मुनियों की रक्षा हुई।
चक्रवर्ती ने नमुचि को प्राणदण्ड देना चाहा। पर सन्त समता के सागर होते हैं। उन्होंने राजा से ऐसा करने की मनाही की। महापद्म अनुताप करता हुआ मुनि के पैरों में पड़कर कहने लगा—'मुझे पता नहीं था कि मेरा प्रधान 'नमुचि' इतना दुष्ट है और आप लोगों को यों संतापित करेगा। मेरे आलस्य, अज्ञान और प्रमोद के कारण भीषण उपसर्ग का सामना आपको करना पड़ा। मेरी त्रुटि माफ करें। मैं इस नमुचि जैसे अधमाधम व्यक्ति को अपने नगर में नहीं रखना चाहता।' यों कहकर उसे प्रताड़ित करके नगर से निकलवा दिया।
विष्णुकुमार मुनि ने निरतिचार संयम पालन करके केवलज्ञान प्राप्त किया। महापद्म चक्रवर्ती भी संयम स्वीकार करके कठोर तपश्चर्या में लगे और केवलज्ञान प्राप्त किया, सिद्धशिला में विराजमान हुए। उनका संपूर्ण आयुष्य तीस लाख वर्ष का था। महापद्म इस युग के बारह चक्रवर्तियों में नौवें चक्रवर्ती थे।
-त्रिपष्टि शलाकापुरुष, पर्व ७
१५५. भगवान् महावीर
सारिणी क्षत्रिय कुंडपुर केवलज्ञान तिथि वैशाख शुक्ला १०
त्रिशला चारित्र पर्याय कार्तिक कृष्णा ३०
जन्म स्थान माता
१. कुछ ग्रन्थों के अनुसार तीसरा पैर नमुचि ने अपने सिर पर रखवाया। फलतः नमुचि
जमीन में धंस गया। मरकर नरक में गया। २. दिगम्बर ग्रन्थों में सात सौ साधुओं को उस यज्ञ से परेशान करने का वर्णन है। वे मुनि पर्वत पर ध्यानस्थ थे। वहाँ चारों ओर अग्नि जलाकर धुआं फैलाकर नमुचि ने उन्हें संतापित करने का प्रयत्न किया। पर विष्णुकुमार मुनि की चेष्टा से मुनियों की रक्षा हुई। उसी दिन से रक्षाबन्धन का पर्व चला।