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२६६ जैन कथा कोष
'प्रभावती' देवी जब गर्भवती थी तब 'मल्लिका' के फूलों की शय्या में बैठने की मनोभावना ( दोहद) बनी। उसे व्यन्तर देव ने पूरा किया । इसलिए पुत्री का नाम 'मल्लिकुमारी' दिया । 'मल्लिकुमारी' का रूप-सौन्दर्य-लावण्य तो अनूठा था ही। सारे भरतक्षेत्र में उनके रूप की तुलना हो सके, ऐसा कोई नहीं था । 'मल्लिकुमारी' को तीर्थंकर होने के कारण गर्भ से ही अवधिज्ञान था । अवधिज्ञान में मल्लिकुमारी ने अपने छः ही मित्र अलग-अलग स्थान में जन्मे हुए देखे | उन्हें प्रतिबोध देने का निश्चय किया ।
'मल्लिकुमारी' ने अशोक वाटिका में एक मोहन घर बनवाया । वह अनेक स्तंभों वाला था । उसके बीच में एक गुप्त गृह बनवाया। उसके चारों ओर छः जालियाँ थीं। उसके बीच में एक विशाल चबूतरा और उसके ऊपर अपनी आदमकद एक सोने की मूर्ति बनवाकर रख दी। मूर्ति अन्दर से खोखली रखी और ऊपर से उसमें कुछ डालने के लिए ढक्कन रखा। उस ढक्कन को खोलकर प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा अन्न उसमें डालने लगी। प्रतिदिन उसमें अन्न डालने से तथा सफाई न करने से वह आहार वहाँ सड़ने लगा। उसकी दुर्गन्ध इतनी तीव्र हो गई मानो कोई मरा हुआ सांप या शव पड़ा हो।
इधर 'मल्लिकुमारी' के रूप की चर्चा चारों ओर फैल गई । वे छः मित्र जो विभिन्न राज्यों में पैदा हुए थे, उनके पास भी उसके रूप की चर्चा ' पहुँची। सभी 'मल्लिकुमारी' के साथ विवाह करने को ललचाये। अपने-अपने दूत भेजकर कुंभ राजा से 'मल्लिकुमारी' की माँग की। दूतों के द्वारा अपनी पुत्री की याचना सुनकर 'कुंभ' राजा कुपित हो उठा। अपमानित करके दूतों को वापस भेजा । अपने-अपने दूतों के द्वारा संवाद पाकर छहों राजाओं ने परस्पर में सन्धि करके एकत्रित होकर 'मिथिला' को घेर लिया। महाराज चिन्तित हो उठे । पर मल्लिकुमारी ने सबको मोहन- घर में ठहराने के लिए कहा। महाराज 'कुंभ' ने सबको मोहन घर में ठहराया। अन्दर घुसते ही जाली
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गुप्त गृह में 'मल्लिकुमारी' की प्रतिमा को 'मल्लिकुमारी' ही समझा। सभी एकटक हो देखने लगे। इतने में 'मल्लिकुमारी' ने पीछे से मूर्ति का ढक्कन खोल दिया। ढक्कन खुलते ही चारों ओर दुर्गन्ध फैल गई। दुर्गन्ध के मारे सभी राजागण परेशान हो उठे। जी घबराने लगा । नाक- मुँह ढक लिया । तब 'मल्लिकुमारी' ने उन्हें सम्बोधित करते हुए कहा—
१. कैसे पहुंची इसका वर्णन 'मल्लिकुमारी के छह मित्र' नामक कथा में पढ़िये ।