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जैन कथा कोष
राज्यकाल
१२८. पद्मप्रभु भगवान्
सारिणी जन्म-स्थान कौशाम्बी दीक्षा तिथि कार्तिक कृष्णा १३ पिता
धर केवलज्ञान तिथि चैत्र शुक्ला १५ माता
सुसीमा चारित्र पर्याय १६ पूर्वांग कम जन्मतिथि कार्तिक कृष्णा १२
१ लाख पूर्व कुमार अवस्था ।। लाख पूर्व कुल आयु ३० लाख पूर्व
२१ लाख निर्वाण तिथि मार्गशीर्ष कृष्णा ११ ५० हजार पूर्व चिह्न कमल (रक्त पद्म)
१६ पूर्वांग 'पद्मप्रभु' वर्तमान चौबीसी के छठे तीर्थंकर हैं। इनका जन्म ‘कौशाम्बी' के महाराज 'धर' की पटरानी 'सुसीमा' के उदर से हुआ। ये नौवें ग्रैवयक स्वर्ग से च्यवन करके माता के उदर में आये। माता ने चौदह स्वप्न देखे। 'पद्म' की शय्या पर सोने का मन में संकल्प हुआ, इसलिए पुत्र का नाम भी 'पद्म' रखा। युवावस्था में अनेक राजकन्याओं के साथ इनका पाणिग्रहण हुआ। बेले के तप में कार्तिक बदी १३ के दिन प्रभु ने दीक्षा स्वीकार की। छः महीने तक छद्मस्थ अवस्था में रहे। बेले के तप में ही चैत्र सुदी पूर्णिमा को कैवल्य प्राप्त किया और तीर्थ की स्थापना की। इनके सबसे प्रमुख गणधर 'सुव्रत' थे। इनका संघ भी विशाल था। एक महीने के अनशन में सम्मेदशिखर पर तीन सौ आठ मुनियों के साथ मृगसिर बदी ११ के दिन प्रभु मोक्ष पधारे।
धर्म-परिवार
गणधर केवली साधु केवली साध्वी मनःपर्यवज्ञानी अवधिज्ञानी पूर्वधर
- १०७ १२,००० २४,००० १०,३०० १०,०००
२३००
बादलब्धिधारी
६६०० वैक्रियलब्धिधारी
१६,८०० साधु
३,३०,००० साध्वी , . .. ४,२०,००० श्रावक
२,७६,००० श्राविका
५,०५,००० —विष्टि शलाकापुरुष चरित्र, ३/४.