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२५६ जैन कथा कोष अपने किये पर बहुत पश्चात्ताप होने लगा। तब कर्मरेख ने उसे धैर्य बँधाते हुए कहा—होनी अटल होती है। जैसी होनहार होती है, वैसी ही बुद्धि हो जाती है, वैसे ही निमित्त.मिल जाते हैं। तुम शोक मत करो। तुमने तो मेरा उपकार ही किया। यदि मैं मनोरमपुर से न निकलता तो राजा कैसे बनता।
कमरेख के इस प्रकार समझाने से भाविनी का शोक दूर हो गया। वह कर्म की अटलता पर विश्वास करने लगी।
राजा कर्मरेख ने कर्म क्षय करने के लिए वृद्धावस्था में संयम लिया और दुस्तर तप करके सद्गति प्राप्त की।
-उपदेश प्रासाद, भाग ४
१४७. भोजकवृष्णि-अन्धकवृष्णि मथुरा नगरी में सूर नाम का एक हरिवंशीय राजा था। उसके दो पुत्र थे—सौरि
और सुवीर । सौरि राजा ने सौरीपुर नगर (सूर्यपुर, आगरा) बसाया । सौरि राजा के पुत्र का नाम अन्धकवृष्णि (विष्णु) और सुवीर राजा के पुत्र का नाम 'भोजकवृष्णि' (विष्णु) था। 'अन्धकवृष्णि' की महारानी 'सुभद्रा' के 'समुद्रविजय', 'वसुदेव' आदि दस पुत्र थे, जो दस दिशाह कहलाये। पाण्डवों की माता ‘कुन्ती' तथा 'शिशुपाल' की माता 'माद्री' ये दो पुत्रियाँ थीं। सुवीर के पुत्र भोजकवृष्णि के उग्रसेन और देवसेन—दो पुत्र थे। 'सत्यभामा', 'राजीमती', नामक दो पुत्रियां थीं। 'उग्रसेन' के पुत्र 'कंस' तथा 'अतिमुक्तक' थे। देवसेन राजा की पुत्री का नाम था 'देवकी' जो जगत्प्रसिद्ध वासुदेव श्रीकष्ण की माता थी। वैसे इन दोनों भाईयों का परिवार पर्याप्त रूप से विशाल, समृद्ध तथा श्रीसम्पन्न था। अनेकानेक प्रामाणिक पुरुष भगवान् 'नेमिनाथ', श्रीकृष्ण, बलभद्र आदि इसी कुल में अवतरित हुए।
-आवश्यक चूर्णि
-वसुदेव हिण्डी १४८. मघवा चक्रवर्ती सावत्थी (श्रावस्ती) नगरी के महाराज 'समुद्रविजय' की पटरानी का नाम 'भद्रा' था। भद्रा ने चौदह स्वप्न देखकर एक भाग्यवान पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम रखा गया 'मघवा'। युवावस्था में अनेक राज-कन्याओं के साथ