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जैन कथा कोष
रखा गया। विद्याधर 'मेघनाथ' को सुभूम' चक्रवर्ती ने वैताढ्य की दोनों श्रेणियों का शासक बना दिया था, क्योंकि मेघनाथ की पुत्री पद्मश्री ' सुभूम चक्रवर्ती' की पटरानी थी। तभी से 'मेघनाथ' का कुल सभी विद्याधरों में उच्च माना जाने लगा था। उसी कुल में प्रतिवासुदेव बलि के रूप में महाराज सुकेतु का जीव
आया ।
युवा होने पर 'पुंडरीक' का विवाह राजेन्द्रपुर नगर के नरेश उपेन्द्रसेन की पुत्री 'पद्मावती' से हुआ। 'पद्मावती' के अभिवन रूप से आकर्षित होकर प्रतिवासुदेव बलि ने उसकी याचना की। बात तन गई । फलतः प्रतिवासुदेव बलि और पुरुषपुंडरीक में घमासान युद्ध हुआ । अन्त में 'पुरुषपुंडरीक' ने बलि को उसी के चक्र से धराशायी कर अपना बदला लिया। यों 'पुरुषपुंडरीक' वासुदेव 'पुरुषपुंडरीक' बन गया ।
वासुदेव ने पैंसठ हजार वर्ष की लम्बी आयु पायी, किन्तु कषायलिप्तता के कारण नरकगामी बना ।
अनुज की मृत्यु का अग्रज 'आनन्द' को गहरा आघात लगा । दुःख-जनित वैराग्य से विरक्त होकर निर्वेद जगा और श्रामणी दीक्षा स्वीकार की । 'आनन्दमुनि' केवलज्ञान प्राप्त करके मुनि बने ।
— त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र, ६/३
१३२. पुरुषसिंह वासुदेव
'अश्वपुर' नगर के महाप्रतापी नरेश 'शिव' के दो रानियाँ थीं— 'विजया' और 'अंभका' । रानी विजया ने चार स्वप्नों से सूचित एक पुत्र को जन्म दिया । उसका नाम सुदर्शन रखा गया। यह पाँचवाँ बलभद्र था । रानी अंभका ने भी सात स्वप्नों से सूचित एक पुत्र को जन्म दिया जो पुरुषसिंह नाम से पाँचवां वासुदेव कहलाया । 'पुरुषसिंह' दूसरे स्वर्ग से च्यवन करके यहाँ आया था । यह इससे पहले 'पोतनपुर' का नरेश विकट था। संयोग ऐसा बना कि 'विकट' राजा सुख-शान्ति से अपना शासन संचालन कर रहा था, उन्हीं दिनों अकस्मात् महाराज 'राजसिंह' ने अपनी लालच की ज्वाला बुझाने के लिए पोतनपुर पर अकारण ही आक्रमण कर दिया । 'विकट' बेचारा विकट परिस्थितियों में फँस गया। बहुत वीरता के साथ 'राजसिंह' के सामने आ डटा । पर पल्ले पड़ी निराशा । 'विकट' को हारना पड़ा।