________________
जैन कथा कोष २५३
दीक्षित हो गये । किन्तु जब 'बाहुबली' से कहलाया गया तब उनका सोया हुआ स्वाभिमान जाग उठा, युद्ध की चुनौती स्वीकार कर ली । चक्रवर्ती की सेना उनके राज्य पर जा धमकी। वे भी सेना सहित मैदान में आ डटे। रणांगण का दृश्य भयानक दीखने लगा। अपरिमित नरसंहार की संभावना दर्शकों की आँखों में तैरने लगी। बीच-बचाव करने वालों की ओर से नरसंहार रोककर दोनों भाईयों को परस्पर युद्ध करके हार-जीत का निर्णय करने की राय दी गई। ध्वनियुद्ध, दृष्टियुद्ध, मुष्टियुद्ध, बाहुयुद्ध, दण्डयुद्ध - पाँच प्रकार के युद्ध किये गये । सभी युद्धों में 'बाहुबली' विजयी रहे। 'भरत' को बुरी तरह पराजय का मुँह देखना पड़ा ।
पराजित व्यक्ति अपना भान भूल बैठता है । 'भरत' ने भी औचित्यअनौचित्य का विचार किये बिना रुष्ट होकर 'बाहुबली' को मारने के लिए चक्र चला दिया। यह देवाधिष्ठित चक्र अपने भाई का कैसे संहार कर सकता था ! चक्र लौट आया, किन्तु इस जघन्यतम प्रयत्न से 'बाहुबली' फुफकार उठे। रोषारुण होकर भरत का संहार करने के लिए मुट्ठी तान ली। 'बाहुबली' की उस तनी हुई मुट्ठी को देखकर देवगण आकाश मार्ग से बीच में आ खड़े हुए और बाहुबली से कहने लगे - वीरवर ! आपकी इस मुट्ठी का आघात सहन करने वाला यहाँ कौन है? जब आप जैसे प्रामाणिक पुरुष भी अपने बड़ों को यों मारने लगेंगे तब बड़ों का सम्मान कौन करेगा? महाराजे 'भरत' ने आपके साथ जो भी व्यवहार किया है उसे पहुँचे हुए साधक की भांति क्षमा कीजिए । उसे भूल जाइये ।
देवों के उद्बोधन से 'बाहुबली' का क्रोध शान्त हुआ । उठाई हुई मुट्ठी को वापस क्या करना था ? अपने सिर का लुंचन करके साधु बन गये ।
विजयी 'बाहुबली' को मुनि देखकर 'भरत' पैरों में झुक गये। अनुताप करते हुए राज्य का भार सँभालने के लिए कहा। आयुधशाला में चक्र के न घुसने की अपनी विवशता बताई। क्षमायाचना करके अपने स्थान पर आये और शासन का संचालन करने लगे ।
'बाहुबली' मुनि के मन में आया – यदि मैं भगवान् आदिनाथ के पास जाऊँगा तो मेरे से पूर्वदीक्षित लघु भाईयों की वन्दना करनी पड़ेगी। साधना व्यक्ति की होती है—यही सोचकर वहीं वन में ध्यानस्थ खड़े हो गये । खानापीना तो छोड़ा ही, पर साथ में तन की चंचलता का परित्याग करके प्रस्तर मूर्ति