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साल
२३० जैन कथा कोष
__ १३३. पुरुषोत्तम वासुदेव 'द्वारिका' नगरी के महाराज 'सोम' के दो रानियाँ थीं—'सुदर्शना' और 'सीता'। महारानी 'सुदर्शना' के चार स्वप्नों से सूचित पुत्र हुआ, जिसका नाम 'सुप्रभ' रखा गया। यह चौथा बलदेव था। दूसरी रानी सीता के सात स्वप्नों से सूचित एक पुत्र हुआ जिसका नाम रखा गया पुरुषोत्तमकुमार। 'पुरुषोत्तम' चौथा वासुदेव था।
कुमार 'पुरुषोत्तम' की आत्मा आठवें सहस्रार कल्प से आयी थी। यह राजा समुद्रदत्त का जीव था। 'समुद्रदत्त' कौशाम्बी का महाराज था। इसकी अनुपम सुन्दरी रानी का नाम 'नन्दा' था। 'नन्दा' सदैव अपने गुणों से पति के हृदय को आनन्दित करती रहती थी। इसलिए राजा का इस पर अधिक प्रेम था। एक बार समुद्रदत्त का मित्र 'मलय' भूमि का महाराज 'चण्डशासन' बहुत दिनों के बाद मिला था, इसलिए 'समुद्रदत्त' ने उसे अपने यहाँ रखा। इस बीच महाराज 'चण्डशासन' नन्दा पर मुग्ध हो गया। अपना विश्वास जमाकर और मौका देखकर नन्दा का अपहरण करके अपने यहाँ ले गया। पीछे से 'समुद्रदत्त' ने उसकी बहुत खोज की। जब पता लगा कि उसे चण्डशासन ले गया है, तब उसे लाने के अनेक प्रयत्न भी किये, पर सभी यत्न बेकार गये। 'समुद्रदत्त' पत्नी के वियोग में शोकमग्न हो गया। सोचा हाय-हाय ! मित्र ने मेरे साथ विश्वासघात किया है। पर सच ही तो है, जहाँ विश्वास होता है, वहीं घात होता है, अन्य स्थान में नहीं। अब इस विश्वासघातियों की दुनिया में रहकर मुझे क्या करना है। ____ संसार से बिल्कुल ही मन उचट गया। विरक्त होकर 'श्रेयांस' मुनि के पास संयम ले लिया। संयम की आराधना करने लगा। पत्नी की यदा-कदा स्मृति हो जाती। अन्त में चण्ड के प्रति तीव्र कषाय के वेग से निदान कर लिया। वहाँ से मरकर आठवें स्वर्ग में देव बना और फिर वहाँ से च्यवकर वासुदेव पुरुषोत्तम के रूप में पैदा हुआ।
उधर चण्डशासन अपने किये हुए अकृत के बल पर भव-भ्रमण करता आ पृथ्वीपुर नगर के महाराज विलास की रानी गुणवती के उदर से पुत्र रूप में पैदा हुआ। इसका नाम 'मधु' रखा।
मधु प्रतिवासुदेव बना । नारद बाबा के उकसाने से 'मधु' और 'पुरुषोत्तम'