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२४०. जैन कथा कोष
के कारण अधिक भार उठाने में असमर्थ है।' . प्रदेशी—'भगवन् ! एक प्रश्न और है। मैंने एक चोर को जीवित भी तोला
और मारने के बाद भी। फिर भी वजन समान रहा। दोनों बार वजन में अन्तर न आना, मेरी मान्यता की ही तो पुष्टि करता है।' __ केशी-'किसी वस्तु को पहले अँधेरे में तोलो, फिर प्रकाश में तोलो, तो क्या वस्तु के भार में कुछ अन्तर आयेगा? इसी तरह एक ताजा सुगन्धित फूल तोलो, फिर उसकी सुगन्ध निकल जाए तब तोलो तो क्या वजन में अन्तर आयेगा?
प्रदेशी-भगवन ! कोई अन्तर नहीं आयेगा। दोनों बार वजर बराबर ही रहेगा।' __ केशी—'राजन ! जीव तो प्रकाश और गन्ध से भी सूक्ष्म है। अतः उसके कारण वजन में न्यूनाधिकता कैसे होगी?' ___ प्रदेशी—'भगवन ! जीव है या नहीं, यह देखने के लिए मैंने एक चोर की जाँच की। मैंने पहले उसे चारों ओर से देखा। फिर उसके टुकड़े-टुकड़े करके देखा । पर जीव कहीं दिखाई नहीं दिया। यदि जीव शरीर से भिन्न होता तो कहीं न कहीं दिखाई अवश्य देता।' ____ केशी—'राजन ! तू उस मूर्ख लकड़हारे की तरह है, जिसने आग पैदा करने के लिए अरणी की लकड़ी के टुकड़े-टुकड़े कर दिये; पर आग उसे उस लकड़ी में कहीं नहीं मिल सकी। तब निराश होकर बैठ गया। उसी के अन्य साथी ने लकड़ी के दो टुकड़ों को परस्पर रगड़कर आग पैदा करके दिखा दी।'
प्रदेशी—'भगवन ! भरी सभा में मुझे मूर्ख कहना क्या उचित है? यानी मैं तो मूर्ख लकड़हारे की तरह हूँ, पर आप तो कुशल हैं। उस दूसरे पुरुष की तरह सबको जीव पैदा करके दिखा दीजिए।'
केशी-'यह देख सामने वाले वृक्ष की टहनियाँ हिल रही हैं, फिर भी हमें हवा दिखाई नहीं देती, जो कि मूर्त है, तब अमूर्त जीव कैसे दिखाया जा सकता है?'
१. मूल कथा में प्रकाश और पुष्पगंध के स्थान पर खाली मशक और हवा से भरी
मशक को तोलने का उदाहरण दिया गया है। यह उदाहरण स्थूल है, क्योंकि हवा में भार होता है। इस वार्तालाप में इतना अन्तर इसलिए किया गया है कि केशी मुनि के अन्य तर्कों की तरह यह भी अकाट्य प्रमाणित हो।