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जन्म स्थान
पिता
कुमार अवस्था
दीक्षा तिथि
केवलज्ञान तिथि
चारित्र पर्याय
१२६. पार्श्वनाथ भगवान्
सारिणी
वाराणसी
अश्वसेन
३० वर्ष
पौष कृष्णा ११
चैत्र कृष्णा ४
७० वर्ष
माता
जन्म तिथि निर्वाण तिथि
जैन कथा कोष २२३
कुल आयु
चिह्न
वामा देवी पौष कृष्णा १०
श्रावण शुक्ला ८
१०० वर्ष सर्प
प्रभु 'पार्श्वनाथ' वाराणसी नगरी के महाराज 'अश्वसेन' के पुत्र थे। इनकी माता का नाम 'वामा' था । सुखशय्या में सोयी हुई महारानी वामादेवी ने चौदह स्वप्न देखे। स्वप्न. पाठकों ने प्रभावशाली पुत्र होने का स्पष्ट संकेत दिया। पौष बदी दसवीं के दिन तेईसवें तीर्थंकर के रूप में 'पार्श्वनाथ' का जन्म हुआ।
'पार्श्वकुमार' जब युवावस्था में पहुँचे तब 'कुशस्थल' नगर के महाराज प्रसन्नजित् की राजकुमारी 'प्रभावती' का विवाह 'पार्श्वकुमार' के साथ हो
गया।
एक दिन 'पार्श्वकुमार' अपने महल के झरोखे में बैठे थे, इतने में देखा कि नगरवासियों के झुण्ड के झुण्ड एक दिशा की ओर जा रहे हैं। पूछने से पता लगा कि नगर के बाहर एक 'कमठ' नाम का तापस पंचाग्नि तप की साधना कर रहा है। लोग हाथ में फल-फूल लेकर उसीकी पूजा करने जा रहे हैं ।
पार्श्वकुमार ने अपने अवधिज्ञान से देखा-तापस की धूनी में एक लक्कड़ में एक नाग-नागिन जल रहे हैं। उस अज्ञान तप का भण्डाफोड़ करने और नाग-नागिन को धर्म का सहारा देने हेतु 'पार्श्वकुमार' वहाँ आये । ताप्स को स्पष्ट शब्दों में कहा – ' - तप की ओट में अनर्थ हो रहा है। बेचारा एक सांप युगल अग्नि में बुरी तरह झुलस रहा है।' यों कहकर अपने सेवक से वह लक्कड़ बाहर निकलवाया। धीरे-धीरे सावधानीपूर्वक उस लक्कड़ को चीरकर सबके सामने झुलसे हुए सांप युगल को बाहर निकाला। सभी दर्शक हैरान हो गये ।
प्रभु ने उस अर्धदग्ध सांप युगल को नवकार मंत्र सुनाग | नवकार मंत्र