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१४० जैन कथा कोष पहुँचा | उसने राजा चन्दन को भेंट देकर सार्थ की सुरक्षा की माँग की। राजा
के आदेश से आरक्षी-प्रमुख ने सायर-नीर को बनजारे के शिविर की रक्षा पर नियुक्त कर दिया।
सायर-नीर रात के समय जागकर पहरा दे रहे थे। रात के समय नींद न आ जाये, इसलिए दोनों आपबीती कहने लगे। रानी मलया शिविर के अन्दर नवकार मंत्र जप रही थी। उसे जब इनकी आपबीती सुनाई पड़ी तो वह बाहर निकल आयी। पुत्रों ने तुरन्त ही माता को पहचान लिया और माता ने पुत्रों को। तीनों का मिलन हो गया।
इस मिलन से बनजारा भी अनजान न रहा। वह समझ गया कि वह स्त्री इन दोनों आरक्षी युवकों की माता है। ये मुझे राजा के सामने पेश किए बिना मानेंगे नहीं और स्त्रीहरण के आरोप में मुझे कठोर दण्ड भोगना पड़ेगा। अतः राजा पर अपनी सदाशयता की छाप लगाने के लिए प्रात:काल ही राजसभा में पहुँचा और बोला—'महाराज ! मुझे वन में एक निराश्रित स्त्री मिली थी। मैंने उसे अपने सार्थ के साथ रख लिया था। अब आप उसे अपने महल में स्थान दे दीजिये, जिससे मेरा भार हट जाये।'
राजा ने स्वीकृति दे दी और लक्खी बनजारा रानी मलया को लेने चल दिया।
इधर सायर-नीर ने आकर राजा से न्याय माँगा और कहा कि इस बनजारे ने बारह वर्ष पहले हमारी माता का अपहरण कर लिया था। रात को ही हमारा उनसे मिलन हुआ है।
तब तक बनजारा रानी मलया को लेकर आ गया। राजा ने अपनी रानी को पहचान लिया और रानी ने अपने पति को। सबका मिलन हो गया।
उदारतापूर्वक राजा चन्दन ने लक्खी बनजारे को क्षमा कर दिया और अपने पुत्रों का पालन-पोषण करने वाले श्रेष्ठी तथा शिक्षा देने वाले गुरु को यथेष्ट धन तथा सम्मान देकर पुरस्कृत किया।
राजा चन्दन के बुरे दिन समाप्त हो चुके थे। कुसुमपुरवासियों को भी मालूम हो गया कि राजा चंदन चम्पापुर के राजा बने हुए हैं। वहाँ के मंत्री
आदि आये और राजा से वहाँ चलने की प्रार्थना करने लगे। राजा चंदन ने दोनों नगरों में थोड़े-थोड़े दिन रहना स्वीकार कर लिया। अब वे दो राज्यों के स्वामी थे। राज्यकार्य में सायर-नीर उनका पूरा-पूरा हाथ बँटाते थे।