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- जैन कथा कोष २११ पालन कर स्वर्ग में पहुँचा । महासती 'दमयन्ती' ने भी संयम स्वीकार किया और साधुचर्या का पालन कर स्वर्ग में गयी।
दमयन्ती ने सोलह सतियों में महासती के रूप में जैन जगत् में प्रसिद्धि पायी।
-त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र, पर्व ८
११६. नारद गुनि वासुदेव, प्रतिवासुदेव की भाँति नारद भी एक पद है। वे भी नौ होते हैं। प्रत्येक वासुदेव के समय में एक नारद होते हैं। इनके नाम हैं—भीम, महाभीम, रुद्र, महारुद्र, काल, महाकाल, चतुर्मुख, नवमुख और उन्मुख । इनमें से कई स्वर्ग गये हैं और कई मोक्ष गये हैं।
नारद बाबा पहुँचे हुए होते हैं। एक-दूसरे को उकसाने में, परस्पर कलह लगाने में ये सिद्धहस्त होते हैं। तापस की-सी वेशभूषा होती है इनकी । ब्रह्मचर्य के पक्के होते हैं तथा सत्यवादी भी होते हैं। इसलिए इनकी सब स्थानों में अप्रतिहत गति-बेरोक-टोक सब जगह जा सकते हैं।
प्रमुख रूप में एक नारद वे थे, जिन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम राम के समय 'कौशल्या' आदि माताओं को सान्तवना देने के लिए लंका में जाकर श्रीराम'
को अयोध्या लौट आने के लिए कहा तथा राम-लवकुश-युद्ध में हताश बने 'राम' की और 'लक्ष्मण' को सारी बात का भेद बताया। दूसरे नारद वे थे, जिन्होंने पाण्डवों के महलों में द्रौपदी के द्वारा समुचित सम्मान न पाकर द्रौपदी का हरण पद्मनाभ के द्वारा कराया तथा सत्यभामा के द्वारा अपमानित होकर रुक्मिणी की खोज करके श्रीकृष्ण के साथ पाणिग्रहण कराकर 'भामा' का मान भंग किया। इनका नाम कच्छुल नारद भी था। वे वहाँ से स्वर्ग गये और वहाँ से एक भवावतारी होकर मोक्ष जाएंगें।
-आवश्यक कथा
१२०. निम्बक अम्बऋषि एक सदाचारी ब्राह्मण था। वह उज्जयिनी में रहता था। उसकी स्त्री का नाम मालुगा और पुत्र का नाम निम्बक था। निम्बक अपने नाम के अनुरूप