________________
..
.. ..
। काष
२१० जैन कथा कोष भेजा। उनसे कहा-'सबके सामने यह बात कहना, बात सुनकर जिसकी आँखों में आँसू आ जाएं उसे कह देना कि दमयन्ती के लिए स्वयंवर की रचना की गई है। उसमें आपको आमन्त्रित किया गया है।' उन सेवकों ने महाराज दधिपर्ण के सामने जाकर उस कुबड़े को सुनाकर कहा-"रे नल ! तेरे जैसा निर्दय, क्रूर, पत्थरदिल, सत्त्वहीन और दुरात्मा कौन होगा जो अपनी विश्वस्त
और पूर्णतः समर्पित नींद में सोयी हुई पत्नी को एकाकिनी छोड़कर चला गया।"
बड़े ने ज्यों ही ये शब्द सुने तो आँखों में आँसू आना स्वाभाविक ही था। अपने आँसू पोंछते हुए उस कुबड़े ने कहा-"यह बात जिसने तुम्हें कही है उससे कह देना कि वह प्राणप्रिय पति के अपराधों को याद करके दिल में रोष न लाए। नल इतना क्रूरहृदय तो नहीं है, पर होनहार के चक्र से यह सब घटित हो गया है, ऐसा लगता है, क्योंकि मैं उनका रसोईयां रहा हूँ। खैर, जो हो गया, उसकी चिन्ता छोड़ो। अब मिलन निकट ही लगता है।" ___ स्वयंवर का निमन्त्रण सुनकर दधिपर्ण ने कहा—"उसका विवाह तो हो चुका है। फिर दोबारा स्वयंवर क्यों? इसका क्या अर्थ है?" तब सेवकों ने कहा—"महाराज ! नीतिकार कहते हैं—गुम हो जाने पर, मर जाने पर, दीक्षित हो जाने पर, पति क्लीव हो अथवा दुराचारी हो तो कन्या को दूसरी बार विवाह कर लेने में कोई आपत्ति नहीं है?' यही सोचकर महाराज ने स्वयंवर मण्डप की रचना की है। बेटी घर में थोड़े ही रह सकती है।" .
स्वयंवर का नाम सुनकर कुबड़े का खून खौलने लगा। भला अपनी पत्नी का दूसरा विवाह कौन सहन कर सकता है? दधिपर्ण के साथ 'नल' वहाँ पहुँचा। अपना मूल रूप बनाकर मण्डप में आ गया। दमयन्ती इसमें सफल रही।
व्यक्ति के दिन बदलते हैं तो चारों ओर से बदला करते हैं। 'नल' और 'दमयन्ती' के दु:ख के सारे बादल छंट गये। 'कूबर' को परास्त कर उसने 'अयोध्या' पर अपना अधिकार कर लिया।
अन्त में 'नल' ने अपना राज्य पुत्र को सौंपकर दीक्षा ले ली। साधुत्व
१. नष्टे मृते प्रव्रजिते, क्लीवे च पतितेपतौ।
पत्या स्वापत्सु नारीणां, पतिरूपो विधीयते ।।
--मनस्पति .