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२०८ जैन कथा कोष ... भरत के साथ कर दिया। यह 'सुभद्रा' ही चक्रवर्ती भरत की 'स्त्री-रत्न' कहलाई। प्रभु के पास नमि-विनमि दोनों भाईयों ने संयम स्वीकार करके मोक्ष प्राप्त किया।
-त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र, १/१
११८. नल राजा राजकुमार 'नल' अयोध्यापति महाराज 'नैषध' के पुत्र थे। उनका विवाह विदर्भ देश के महाराज 'भीम' की पुत्री दमयन्ती के साथ हुआ। 'दमयन्ती' जब माता के गर्भ में आयी, तब माता ने देव से डरते हुए दन्ती (हाथी) को भागते हुए देखा था, इसलिए पुत्री का नाम दवदन्ती रखा गया। पर इसका प्रसिद्ध नाम दमयन्ती हो गया। . ___ 'नैषध' के बाद 'नल' राजसिंहासन पर बैठा। सत्य, न्याय, व्यक्तित्व तथा कर्त्तव्य के बल पर 'नल' ने अच्छी लोकप्रियता प्राप्त की। पर स्वर्णथाल में लोहे की कील के समान 'नल' में जूए का दुर्व्यसन था। नियति का चक्र नल पर इस प्रकार चला कि उसने अपने लघु भाई 'कूबर' के साथ जूआ खेला और उस खेल में 'युधिष्ठिर' की भांति अपना सारा राज्य हार कर । वन की ओर प्रस्थान किया। पति-परायणा दमयन्ती भी साथ गई। दोनों सन्तानों को उनके ननिहाल भेज दिया गया।
'नल' चाहता था कि 'दमयन्ती' भी अपने पीहर चली जाए और वनवास के कष्टों में व्यर्थ व्यथित न हो, परन्तु दमयन्ती ऐसा करने को तैयार नहीं हुई। वन में साथ-साथ रही। 'दमयन्ती' को ज्यों-ज्यों 'नल' दु:खों से घिरी देखता, त्यों-त्यों उसका हृदय चूर-चूर हो जाता। उसने एक पत्र में विदर्भ देश के मार्ग का संकेत लिखकर उसके आँचल के छोर से बाँध दिया और स्वयं उसे निद्रावस्था में छोड़कर अन्यत्र चला गया। दमयन्ती जब जागी तो 'नल' को पास में न देखकर विलाप करने लगी। इधर-उधर खोजने लगी तो एक दानव उसकी पति के प्रति अनन्य निष्ठा देखकर परम प्रसन्न हुआ और बोला'बारह वर्ष बाद तुझे तेरा पति सकुशल मिल जायेगा।'
बाद में दमयन्ती अचलपुर में अपनी मौसी के यहाँ अपने को दमयन्ती की दासी बताकर रही। कुछ दिन बाद 'भीम' राजा ने खोज करवाई, तब 'दमयन्ती' प्रकट हो गई और अपने पिता के यहाँ आ गई।