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२०६ जैन कथा कोष विवाह हुआ। 'पद्मरथ' अपना सारा साम्राज्य नमि को सौंपकर स्वयं साधु बन गया। ___ एक दिन ऐसा प्रसंग आया कि नमिराज का 'सुभद्र' नामक गजराज मदोन्मत्त होकर भाग निकला। वह दौड़ता-दौड़ता 'चन्द्रयश' के यहाँ 'सुदर्शनपुर' में पहुँच गया। चन्द्रयश ने उसे अपने यहाँ बाँध लिया। 'नमिराज' ने जब माँगा तो 'चन्द्रयश' ने स्पष्ट कहलाया कि भीख माँगना क्षत्रिय को शोभा नहीं देता है, क्षत्रियों के तो प्रत्येक वस्तु का आदान-प्रदान तलवार के बल पर ही होता है।
फिर क्या था? दोनों में ठन गई और समरांगण में तलवारें चमकने लगीं। हम दोनों सहोदर भाई हैं, मदनरेखा के आत्मज हैं, यह किसी को पता नहीं है। ___भीषण नर-संहार होते देखकर 'मदनरेखा' दोनों को प्रतिबोध देने वहाँ पहुँची। छिपा हुआ सारा पर्दाफाश हुआ। सारा रहस्य स्पष्ट हो चुका था। दोनों भाई परस्पर प्रेम से मिले। 'चन्द्रयश' ने अपने लघु सहोदर 'नमिराज' को अपनी भुजाओं में जकड़ लिया। अपनी व्यर्थ की अकड़ पर अनुताप करता हुआ सुदर्शनपुर का राज्य नमि को सौंपकर स्वयं संयमी बन गया। युद्ध-विराम हो जाने पर साध्वी 'मदनरेखा' अपने स्थान पर वापस लौट आयी।
नमिराज दोनों ही राज्यों का कुशलता से संचालन करने लगा। एकदा नमिराज के शरीर में दाह ज्वर का भीषण प्रकोप हुआ। उसे शान्त करने हेतु रानियाँ मिलकर बावना चन्दन घिसने लगीं। घिसते समय हाथों के हिलने से हाथों की चूड़ियों की ध्वनि 'नमिराज' के कानों को अप्रिय लगने लगी। अतः आवाज को बन्द करने के लिए कहा। महारानियों ने सुहाग के चिह्नस्वरूप एक-एक चूड़ी हाथों में रखकर शेष चूड़ियाँ निकालकर अलग रख दीं। अब आवाज बन्द होनी ही थी। आवाज को बन्द देखकर 'नमिराज' ने कारण जानना चाहा। तब बताया गया कि अकेली चूड़ी कैसे शोर कर सकती है। __यों सुनते ही नमिराज प्रबुद्ध हो उठे। चिन्तन की धारा ही बदल गई। मिराज सोचने लगे—सारी चूड़ियाँ मिलकर कितना शोर कर रही थीं। अकेली चूड़ी बिल्कुल भी शोर नहीं कर रही है। वास्तव में अकेलेपन में ही सुख है।