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जैन कथा कोष २०३ कुमार अवस्था २५०० वर्ष कुल आयु १०००० वर्ष राज्यकाल ५००० वर्ष चिह्न
नीलोत्पल 'नमिनाथ' मिथिलानगरी के महाराज 'विजय' की महारानी विप्रा के उदर में दसवें प्राणत देवलोक से च्यवकर आये। प्रभु के गर्भ में आते ही महाराज विजय ने कई दुर्धरों को अपने अधीन बना लिया। वे पैरों में आ झुके। इसलिए अपने पुत्र का नाम नमि रखा। युवावस्था में अनेक रूप.लावण्यवती कन्याओं के साथ इनका विवाह हुआ। वर्षीदान देकर प्रभु ने दीक्षा ली। मात्र नौ महीने छद्मस्थ रहकर प्रभु ने केवलज्ञान प्राप्त किया। तीर्थ की स्थापना की। अन्त में प्रभु ने एक मास अनशन करके सम्मेदशिखर पर बैशाख बदी १० को मोक्ष प्राप्त किया। ये इक्कीसवें तीर्थंकर हैं।
धर्म-परिवार गणधर १७ वादलब्धिधारी
१००० केवली साधु १६०० वैक्रियलब्धिधारी
५००० केवली साध्वी ३२०० साधु
२०,००० मनःपर्यवज्ञानी १२६० साध्वी
४१,००० अवधिज्ञानी १६०० श्रावक
१,७०,००० पूर्वधर ४५० श्राविका
३,४८,००० -त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र, ७/११
११६. नमिराज मालव प्रदेश में 'सुदर्शन' नगर का स्वामी था मणिरथ । उसके एक छोटा भाई 'युगबाहु' था। उसकी पत्नी 'मदनरेखा' वास्तव में ही मदन–कामदेव की रेखा ही थी। उसक रूप-लावण्य अनुपम और आकर्षक था। ___एक दिन 'मणिरथ' ने दूर से ही मदनरेखा को देख लिया। देखते ही वह कामान्ध बन गया। जैसे-तैसे उसे ललचाने को बेचैन रहने लगा। उसके ध्यान में अपने-आपको भूल बैठा।
__ अपना रास्ता साफ करने के लिए मणिरथ ने युगबाहु को सीमा के युद्ध में भेज दिया और उसके पीछे मदनरेखा को अपनी ओर आकर्षित करने हेतु तरह-तरह की सामग्री उसके पास भेजने लगा। 'मदनरेखा' को उसकी दुर्बुद्धि की तनिक भी गन्ध नहीं था। वह जेठ को पितातुल्य मानकर उसकी भेजी