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२०२ जैन कथा कोष
कितनी नीरस लगने लग जाती है। यों चिन्तन करते ही उन्हें जाति-स्मरणज्ञान हो गया। वैराग्य जगा, स्वयं के हाथ से पंचमुष्टि लुंचन करके साधु बन गया
और प्रत्येकबुद्ध कहलाया। ___ एक बार करकण्डु, द्विमुख, नमिराज और नग्गति—चारों ही प्रत्येकबुद्ध 'क्षितिप्रतिष्ठित' नगर में आये। वहाँ व्यन्तर देव के मन्दिर के चार द्वार थे। 'करकण्डु' उस मन्दिर में पूर्व द्वार से, 'विमुख' दक्षिण द्वार से, 'नेमि' पश्चिम द्वार से तथा 'नग्गति' उत्तर द्वार से प्रविष्ट हुए। व्यन्तर देव ने यह सोचकर अपना मुँह चारों ओर कर लिया कि साधुआँ का पीठ कैसे कर दूँ। “करकण्डु' खुजली से पीड़ित थे। उन्होंने एक कोमल कण्डूयन लिया और कान को खुजलाया। खुजला लेने के बाद उन्होंने कण्डूयन को एक ओर छिपा लिया। द्विमुख ने यह देख लिया। उन्होंने कहा-'मुनि ! अपना राज्य, राष्ट्र, पुर,
अन्तःपुर आदि सब कुछ छोड़कर इस कण्डूयन का संचय क्यों करते हो?' यह सुनते ही 'करकण्डु' के उत्तर देने से पूर्व ही नमि ने कहा-'मुने ! आपके राज्य में आपके अनेक कृत्यकर—आज्ञा पालने वाले थे। उनका कार्य था दण्ड देना और दूसरों का पराभव करना। इस कार्य को छोड़ आप मुनि बने। फिर आज आप दूसरों के दोष क्यों देख रहे हैं?' यह सुन नग्गति ने कहा-'जो मोक्षार्थी हैं, जो आत्ममुक्ति के लिए प्रयत्न करते हैं, जिन्होंने सब कुछ छोड़ दिया है, वे दूसरों की गर्दा कैसे करेंगे?' तब करकण्डु ने कहा-'मोक्ष-मार्ग में प्रवृत्त साधु और ब्रह्मचारी यदि अहित का निवारण करते हैं तो वह दोष नहीं है। नमि, द्विमुख और नग्गति ने जो कुछ कहा है, वह अहित-निवारण के लिए है, अत: वह दोष नहीं है।' अन्त में चारों ही मोक्ष में गये।
-उत्तराध्ययन, वृत्ति ६
जन्म स्थान पिता
११५. नमिनाथ भगवान्
सारिणी मिथिला दीक्षा तिथि आषाढ़ कृष्णा ६ विजयसेन केवलज्ञान तिथि मार्गशीर्ष शुक्ला ११ वप्रा चारित्र पर्याय
२५०० वर्ष श्रावण वदी ८ निर्वाण तिथि वैशाख कृष्णा १०
माता जन्मतिथि