________________
जैन कथा कोष १३६ ने देखा कि थोड़ी ही दूर कोई नगर है। उसके कंगूरे चमक रहे हैं। लढे का सहारा छोड़कर वह नगर की ओर चल दिया। मार्ग में एक छोटा-सा गाँव मिला। हारा-थका तो था ही, साथ ही पत्नी और पुत्रों से बिछुड़ने का अत्यधिक दुःख भी था। वह एक मकान के चबूतरे पर बैठ गया। उस घर मे रहने वाली गृहस्वामिनी उसके रूप पर मोहित हो गयी। उसने स्नानादि तथा भोजन कराया और फिर अपनी कुत्सित इच्छा प्रकट की। राजा चन्दन स्वदारासंतोषी था। किसी तरह उस स्त्री के चंगुल से निकल भागा और कई कोस तक भागता रहा। फिर उसे एक राजोद्यान मिला। वह वहाँ लेटकर थकान मिटाने लगा। थका हुआ तो था ही, बगीचे की ठंडी हवा में उसे नींद आ गयी। ___ वह बगीचा चम्पापुर नगर का राजोद्यान था। वहाँ का राजा निस्संतान मर गया था। नये राजा के चयन के लिए मंत्रियों ने पंचदिव्य (पट्टस्तिनी अश्व, कलश, छत्र, पंचवर्णी पुष्पमाला) सजाए। दिव्यों ने सोते हुए राजा चन्दन का चयन कर लिया। प्रजा ने जय-जयकार किया। इससे राजा चन्दन की नींद खुल गयी। वह वहाँ का राजा बन गया। राजा बनते ही सबसे पहले उसने कुछ खोजी सैनिक स्थान का संकेत करके अपने पुत्रों को लाने भेजे । लेकिन सैनिक खाली हाथ लौट आये। उन्होंने बताया-वहाँ कोई बालक नहीं मिले।
राजा चन्दन ने भाग्य की विडम्बना मानकर संतोष किया, किन्तु उसे विश्वास था कि एक दिन उसके पत्नी और पुत्र मिलेंगे अवश्य। इसी विश्वास को मन में संजोए राजा चन्दन चम्पापुर का शासन संचालन करने लगा। ___ इधर सायर-नीर नदी के दोनों किनारों पर दो वक्षों से बँधे थे। उन्हें बँधे दो दिन हो गये थे। तभी एक दयालु सेठ का सार्थ वहाँ आया। सेठ उन दोनों को अपने साथ ले गया। उसने परिचय पूछा तो उसे ज्ञात हो गया कि ये दोनों क्षत्रिय-पुत्र हैं। उसने उन्हें क्षत्रियोचित शिक्षा दिलवाई। कुछ ही वर्षों में वे दोनों सभी विद्याओं में निपुण हो गये और युवा भी हो गये।
अब सायर और नीर दोनों ही श्रेष्ठी की आज्ञा लेकर माता-पिता की खोज में निकल पड़े और घूमते-घूमते चम्पापुर में आये | वहाँ उन्होंने राजा के आरक्षी दल में नौकरी कर ली। शूरवीरता और कर्तव्यपरायणता से वे काम करने लगे।
लक्खी बनजारा भी अनेक नगरों में व्यापार करता हुआ चम्पापुर में आ