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१५० जैन कथा कोष
असमर्थ पा रहा हूँ। यही कारण है कि आपका उपदेश मेरे गले नहीं उतर रहा है ।
चित्त — तू श्रमणधर्म स्वीकार करने में अपने आपको असमर्थ पा रहा है, फिर भी तू धर्मस्थित होकर आर्य कर्म करने वाला बन। इससे परलोक में वैक्रिय शरीरधारी देव तो बन ही सकता है।
यों कहकर चित्त मुनि वहाँ से अन्यत्र विहार कर गये । अत्युत्कट साधना के द्वारा केवलज्ञान प्राप्त करके वे मोक्ष में विराजमान हुए ।
ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती राज्य संचालन करने लगा। एक ब्राह्मण ने ब्रह्मदत्त की दोनों आँखें फोड़ दीं। इससे ब्राह्मण जाति पर ही चक्रवर्ती कुपित हो उठा और अनेक ब्राह्मणों का संहार करवाया । यहाँ तक आदेश दिया कि सभी ब्राह्मणों को मारकर उनकी आँखें निकालकर मेरे सामने थाल में भरकर उपस्थित करो । . मंत्रियों ने इस नृशंसतापूर्ण आदेश का पालन करते हुए सोचा- पाप एक का, दण्ड अनेक को; किन्तु करें क्या? अतः कुछ सोच-विचारकर श्लेष्मांतक फलों (एक ऐसा फल जो आँख के आकार का, मुलायम, मृदु और चिपचिपा होता है) से थाल भरकर चक्रवर्ती के सामने रख दिया। चक्रवर्ती उस पर हाथ फेरफेरकर मन में सन्तुष्टि का अनुभव करने लगा ।
एक दिन -दो दिन नहीं, यों सोलह वर्ष रौद्रध्यान में बिताये । रौद्रध्यान के परिणाम प्रतिदिन बढ़ते गये। उन्हीं परिणामों में मरकर वह सात सौ वर्ष की आयु पूरी करके सातवें नरक में पैदा हुआ ।
-उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन १३ - त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र, पर्व ६ ८०. चुलनीपिता
'चुलनीपिता' वाराणसी नगरी में रहने वाला एक वैभव - सम्पन्न गाथापति था । उसकी पत्नी का नाम था 'श्यामा' । वह चौबीस कोटि सोनैयों का स्वामी कहलाता था। उसने अपनी सारी सम्पत्ति अर्थ-नीति के अनुसार तीन भागों में विभक्त कर रखी थी। आठ कोटि सोनैये व्यापार में, आठ कोटि सोनैये उपकरणों में तथा आठ कोटि सोनैये निधि रूप में सुरक्षित रखे थे। इतना ही नहीं, दस-दस हजार गायों के इसके पास आठ गोकुल थे। इसके यहाँ सोने के ही नहीं, अन्न के भी भण्डार भरे रहते थे, दूध की नदी बहती थी अर्थात्