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जैन कथा कोष
सारा भ्रम मिटाया। राजा उद्विग्न हो उठा— कहीं 'अभय' महल न जला दे । जल्दी से वहाँ से चलकर आया। दूर से महलों से धुआँ निकलता देखकर एक बार हत्प्रभ हो गया, पर जब पता लगा कि 'अभय' ने बहुत ही बुद्धिमता का परिचय दिया है— महलों को न जलाकर महलों के पास वाली फूस की खाली झोपड़ियाँ जलाकर मेरे आदेश का पालन किया है, महारानी सुरक्षित हैं, तब उसे संतोष हुआ ।
श्रेणिक ने महारानी के पास जाकर अपनी भ्रम-भरी भूल का अनुताप करते हुए क्षमा माँगी । पुन:-पुनः चेलना की सराहना करने लगा — तुम्हें धन्य है, तुम्हारा जीवन धन्य है । भगवान् महावीर ने अपने श्रीमुख से तुम्हारी प्रशंसा की है । धन्य है महासती ! चारों ओर सती चेलना का जयनाद गूँज रहा था । — त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र
८४. जमाली
जमाली क्षत्रियकुंडनगर में रहने वाला एक क्षत्रिय राजकुमार था। वह भगवान् महावीर का संसार-पक्षीय जामाता था। वैसे भानजा भी था । भगवान् महावीर एक बार जनपद में विहार करते हुए कुंडनगर में पधारे। परिषद् वन्दन करने गई। प्रभु की देशना सुनकर जमाली प्रतिबुद्ध हुआ । माता-पिता की आज्ञा लेकर पाँच सौ क्षत्रियकुमारों के साथ प्रव्रजित हुआ और श्रमणधर्म का पालन करता हुआ भगवान् के संघ के साथ विचरण करने लगा ।
एकदा जमाली ने प्रभु से जनपद में विहार करने की आज्ञा चाही । प्रभु जानते थे कि जनपद में विचारों का परिपक्व व्यक्ति ही अविचल रह सकता है, अन्यथा विभिन्न विचारों को सुनकर व्यक्ति दिग्भ्रान्त हो सकता है। यह सोचकर प्रभु मौन रहे ।
माली अणगार प्रभु के आदेश की अवगणना करके मौन को ही सहमति मानकर अपने पाँच सौ शिष्यों को साथ लेकर चल पड़ा ।
विहार करते-करते जमाली सावत्थी के कोष्ठक उपवन में आकर ठहरा । उन दिनों अरस-विरस आहार के कारण जमाली मुनि कुछ अस्वस्थ था । उसके शरीर में असह्य वेदना थी। अपने शिष्यों से बिछौना करने के लिए कहा । शिष्यगण बिछौना करने लगे। बीच-बीच में जमाली ने दो-तीन बार पूछा—बिछौना कर दिया ?