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जैन कथा कोष १७३
इस उत्पन्न होने वाले पुत्र को भी अंगहीन कर देगा, अतः कुछ उपाय सोचना चाहिए। 'तेतलीपुत्र' प्रधान को बुलाकर उसने अपने मन की बात कही। संयोगवश 'पोटिला' भी उन दिनों गर्भवती थी। दोनों के साथ ही संतान पैदा हुई। 'पोट्टिला' के मृत पुत्री पैदा हुई और रानी पद्मावती के पुत्र पैदा हुआ। रानी ने अपना पुत्र प्रधान को सौंप दिया। उसकी वह मृत पुत्री अपने पास रख ली। वह राजपुत्र तेतली-पुत्र प्रधान के घर 'सके पुत्र के रूप में बड़ा होने लगा। उसका नाम 'कनकध्वज' रखा गया। बड़ा होकर 'कनकध्वज' बहत्तर कलाओं में पारंगत हो गया।
कुछ समय बाद 'पोटिला' के ऊपर 'तेतलीपुत्र' का वह प्रेम न रहा, जो कि पहले था। 'पोट्टिला' के हृदय में पति के इस रुख का अत्यधिक अनुताप था। प्रत्येक समय वह आर्तध्यान में रहती। उसी समय 'सुव्रता' नामक एक साध्वी भिक्षार्थ वहाँ आयी। 'पोट्टिला' ने साध्वीजी से कहा-आप मुझे कोई वशीकरण मन्त्र बता दीजिए, जिससे मेरे पति मेरे वश में हो जाएं।
साध्वी ने कहा-हम तो संसार से विमुख हैं। तन्त्रमन्त्र के सम्बन्ध में हम कुछ भी नहीं कहते हैं। तुम्हारी इच्छा हो तो सर्वज्ञ प्रभु का धर्म स्वीकार करो, जिससे आत्म-शान्ति का अनुभव हो सके। ___'पोट्टिला' प्रतिबुद्ध हुई। श्रावकधर्म स्वीकार किया। कुछ समय बाद 'पोटिला' दीक्षा लेने को तैयार हुई। पति से आज्ञा माँगी। तेतलीपुत्र ने कहा—मैं आज्ञा दे सकता हूँ पर शर्त यह है, यदि तुम स्वर्ग में जाओ और वहाँ देव बनो तो मुझे आकर प्रतिबोध देना।
पोटिला ने यह स्वीकार किया और साध्वी बन गई। अपनी निरतिचार साधना में लीन रहने लगी। अन्त में अनशन कर स्वर्ग में उत्पन्न हुई।
महाराज 'कनकरथ' दिवंगत हो गये। राज्य का अधिकारी कौन हो, इस चिन्ता में सब उलझ गये । 'तेतली प्रधान' ने सारा रहस्य बताकर 'कनकध्वज' को राज्य पद दिलवा दिया। 'कनकध्वज''तेतलीपुत्र का बहुत सम्मान करता था। राज्य सम्मान को पाकर 'तेतलीपुत्र' उत्तरोत्तर वैभव में निमग्न रहने लगा। उस समय 'पोट्टिला' देव का आसन प्रकंपित हुआ। देव ने उसे प्रतिबोध देना चाहा। उसने राजा और प्रधान के मध्य कुछ दुराव पैदा कर दिया।
इस दुराव से क्षुब्ध होकर तेतलीपुत्र ने सोचा-यह अपमानिक जीवन जीने से मरना ही श्रेष्ठ है। यों विचार कर आत्महत्या करने को तैयार हो