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१७८ जैन कथा कोष ___'दत्त' अपने तीसरे पूर्वभव में शीलपुर नगर के महाराज मंदरधीर का ज्येष्ठ पुत्र 'ललितमित्र' था। ललितमित्र के एक छोटा भाई भी था। महाराज 'मंदरधीर' ने अपने विश्वस्त सचित खल के खलतामय परामर्श पर 'ललितमित्र' को उसके न्यायपूर्ण अधिकार से वंचित करके अपने छोटे राजकुमार को युवराज घोषित कर दिया। 'ललितमित्र' को अत्यधिक दुःख हुआ। जब उसे यह पता लगा कि यह सारा काम खल की कुटिल चाल से हुआ है, तब अपने आप को सँभाले भी नहीं रख सका। द्वेष का अलाव मन ही मन समेटे राज्य को छोड़कर चला गया और 'घोषसेन' मुनि के पास जाकर प्रव्रजित हो गया। तप में लीन रहकर भी खल के विनाश का निदान कर बैठा। बिना प्रायश्चित, आलोचना और पश्चात्ताप किये 'ललितामुनि' दिवंगत हुए और प्रथम स्वर्ग में गये। वहाँ ले च्यवकर यहाँ 'दत्त' के रूप में आये। ___ खल भी भवाटवी में भटकता हुआ 'तिलकपुर' नगर में विद्याधरों का राजा बना। इसका नाम प्रह्लाद रखा गया। यह प्रतिवासुदेव बना। महाराज 'अग्निसिंह' भी प्रतिवासुदेव प्रह्लाद के ही अधीन थे। ___'प्रह्लाद' को जब राजकुमार 'दत्त' और नन्दन के बढ़ते वर्चस्व का दूत के द्वारा पता चला तब वह चिन्तित हो उठा। उसने उन्हें कुचलना चाहा। अधिशास्ता के नाते अग्निसिंह से उसके गजेन्द्र की याचना की। माँगने से तो भीख भी मुश्किल से मिलती है, तब हाथी कौन देने वाला था? दोनों में युद्ध छिड़ गया। युद्ध-भूमि में दत्त ने प्रह्लाद का प्राणान्त कर अपना बदला ले लिया। देवताओं ने 'दत्त' को सातवाँ वासुदेव घोषित किया। __ वासुदेव के पद की उपलब्धि निदान से होती है। अतः ये हिंसानन्दी और परिग्रहानन्दी अधिक होते हैं। दत्त भी ५६,००० वर्ष की सुदीर्घ आयु भोगकर पाँचवी नरक में गया।
'बलभद्र' नंदन संसार से विरक्त होकर 'नंदन मुनि' बन गये। एकावली रत्नावली लघुसिंह-महासिंह निक्रीड़ित तप करके कर्मों की निर्जरा की। केवलज्ञान प्राप्त करके मोक्ष प्राप्त किया। इनकी कुल आयु ६५,००० वर्ष की थी।
-त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र, ६/५
१०१. दमयन्ती दमयन्ती विदर्भ देश के कुण्डिनपुर नगर के राजा भीम की पुत्री थी। वह