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१५८ जैन कथा कोष रखा था। ढंक श्रावक ने उसे समझाने के लिए उस चादर के एक कोने को जला दिया। जब चादर जलने लगी, तब साध्वी अन्दर से आकर बोली-चादर जल गई। __ढंक ने टोकते हुए कहा-जल कहाँ गई? आपके सिद्धान्तानुसार तो ऐसे कहिये कि जल रही है।
साध्वी की समझ में बात आ गई कि व्यवहार में भाषा का प्रयोग वैसे ही होता है, जैसे महावीर करते हैं। जितना काम कर लिया वह तो हो ही गया। अतः क्रियामाणकृत का सिद्धान्त महावीर का समीचीन है। यदि पहले हिस्से को हुआ नहीं मानेंगे तो सौवें हिस्से को हुआ कैसे मानेंगे। ढंक के यों समझाने से साध्वी प्रियदर्शना महावीर के संघ में पुनः प्रविष्ट हो गईं।
-भगवती ६/३३
८५. जम्बूस्वामी 'जम्बू' स्वामी 'राजगृह' में रहने वाले सेठ 'ऋषभदत्त' की सेठानी 'धारिणी' के पुत्र थे। जम्बू वृक्ष के स्वप्न से संसूचित पुत्र पैदा हुआ, इसलिए पुत्र का नाम जम्बूकुमार रखा गया । युवावस्था को प्राप्त होने पर समपन्न सेठों की आठ कन्याओं के साथ कुमार का सम्बन्ध कर दिया गया।
उन्हीं दिनों भगवान् महावीर के पाँचवें गणधर श्री सुधर्मा स्वामी राजगृह में पधारे। जम्बूकुमार उपदेश सुनने के लिए वहाँ आये। उपदेश का अचूक असर हुआ। जम्बू विरक्त बन गया और संयम ग्रहण करने के लिए अपने माता-पिता से आज्ञा चाही। माता-पिता ने इसे येन-केन-प्रकारेण विवाह करने का आग्रह किया। 'जम्बूकुमार' इस शर्त पर तैयार हुआ कि मैं विवाह कर लूँगा, पर दूसरे दिन प्रात:काल ही साधु वन जाऊँगा, यह बात उन कन्याओं को पहले ही बता दी जाये। वे कहीं अपने साथ धोखा हुआ न समझ लें। सेठ ने कन्याओं को कहला दिया।
कन्याएं भी यही सोचकर तैयार हो गईं कि हम सब नहीं पहुँचती तब तक वे संयम लेने की बात कर रहे हैं। हमारे पहुंचते ही संयम लेने की बात हवा में उड़ जाएगी, अन्यथा उनकी गति सो हमारी गति।
धूमधाम से आठों के साथ जम्बूकुमार का विवाह हो गया। दहेज में विपुल द्रव्य आया। सुहारागत मनाने आठों पलियाँ जम्बूकुमार के साथ महल में चढ़