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जैन कथा कोष १५७ शिष्यों ने कहा—किया नहीं, कर रहे हैं।
शिष्यों का उत्तर सुनकर जमाली इस निर्णय पर पहुँचा कि महावीर का, जो क्रियमाण को कृत कहते हैं अर्थात् किये जाने वाले कार्य को किया हुआ कहते हैं, यह सिद्धान्त गलत है। मैं प्रत्यक्ष देख रहा हूँ, शिष्य मुझे बता रहे हैं—बिछौना किया नहीं है। __ जमाली अणगार ने अपने विचार शिष्यों के सम्मुख रखे। उसके विचार कइयों को अच्छे लगे और कइयों को नहीं रुचे। जिन्हें रुचे, वे जमाली के साथ रहे, शेष भगवान् महावीर के पास लौट आये।
- जमाली अब अपने इस सिद्धान्त की खुलकर पुष्टि करने लगा। अल्पज्ञ में अहं की अधिक अकड़ता होती है। मुझे केवलज्ञान हो गया, मैं जिन हूँ, केवली हूँ—यह कहता हुआ प्रभु महावीर के पास आया। ___ गौतम स्वामी ने उसके अहम को दूर करने के लिए पूछा—अगर तुम केवलज्ञानी हो तो बताओ कि लोक शाश्वत है या अशाश्वत? जीव शाश्वत है या अशाश्वत? __गौतम स्वामी के इन छोटे-छोटे प्रश्नों को सुनकर ही जमाली निरुत्तर हो गया। निरुत्तर बना मूक खड़ा रहा। कुछ भी उत्तर न दे सका। तब भगवान् महावीर ने कहा-जमाली । इन प्रश्नों के उत्तर देने में तो मेरे अनेक छद्मस्थ मुनि भी समर्थ हैं, तब तुम अपने आपको सर्वज्ञ कहकर भी मौन कैसे खड़े रह गये? ___ भगवान् महावीर ने लोक और जीव की शाश्वतता-अशाश्वतता का विशद् विवेचन करते हुए कहा-'द्रव्य से लोक और जीव शाश्वत है तथा पर्याय से अशाश्वत है,' पर जमाली प्रभु की वाणी को न मानता हुआ वहाँ से चला गया।
कई वर्ष तक श्रमण पर्याय का पालन करके भी अभिनिवेशिक मिथ्यात्व के कारण मृत्यु को प्राप्त होकर लांतक नामक छठे किल्विषी में पैदा हुआ।
जमाली की पत्नी भगवान महावीर की पुत्री प्रियदर्शना भी जमाली के विचारों से प्रभावित होकर एक हजार साध्वियों के साथ जमाली से मिल गई थी और उसके इस नवीन मिथ्या सिद्धान्त को मानने लगी थी। एक बार वह ढंक गाथापति के मकान में ठहरी। आहार करने के लिए चादर का परदा लगा