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जैन कथा कोष ६१ कर बैठी। उदयन ने दो-तीन बार टोका भी, पर वह नहीं सँभली, तब उदयन ने गुस्से से कहा—'कानी ! ठीक से बोल।' कन्या भी कुपित हो उठी। वह बोली-'कुष्ठी ! ऐसे कैसे बोलता है, ठीक ढंग से बोल ।' उदयन बोला'कोढी कौन है?' कन्या ने कहा-कानी कौन है? जब पर्दा उठाया गया तो भ्रम का पर्दाफाश हो गया। दोनों एक-दूसरे का सौन्दर्य देखते ही रह गये। उनमें प्रेम का अंकुर फूटा और वे प्रगाढ़ प्रीति के बंधन में बँध गये। 'वासवदत्ता' को लेकर 'उदयन' वहाँ से रवाना हो गया। चण्डप्रद्योत को जब पता लगा, तब वह आग-बबूला हो उठा। उसने उदयन को पकड़ना चाहा, पर मंत्रियों के समझाने से वासवदत्ता के साथ विधिपूर्वक शादी करके उसे अपना जामाता बना लिया।
उसके बाद उदयन-वासवदत्ता साध्वी मृगावती के दर्शन करने गये। साध्वीजी से उन्होंने श्रावक के बारह व्रत धारण किये और धर्मपूर्वक जीवन बिताने लगे।
–त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र
४०. उदायन राजर्षि उदायन सिंधु सौवीर देश का राजा था। वीतभयनगर उनकी राजधानी थी। राजा चेटक की पुत्री प्रभावती उनकी रानी थी। रानी परम श्रमणोपासिका थी, किन्तु राजा उदायन तापसधर्म का अनुयायी था। प्रभावती मृत्यु पाकर देवी बनी और उसने राजा उदायन को प्रतिबोध देकर श्रावक बनाया।
एक बार राजा उदायन पौषधशाला में बैठा धर्म-चिंतन कर रहा था, तब उसके मन में ये विचार उठेयदि भगवान् महावीर वीतभय नगरी में पधारें तो मैं गृहस्थ-धर्म को त्यागकर मुनि-धर्म ग्रहण कर लूँगा। ___भगवान् महावीर वीतभय नगरी पधारे। राजा उदायन प्रतिबुद्ध हुआ। उसने अपने पुत्र अभीचिकुमार को राज्य न देकर, भान्जे. केशी को राजसिंहासन पर बिठाया और श्रामणी दीक्षा ग्रहण कर ली।
दीक्षित होकर राजर्षि उदायन दुष्कर तप करने लगे। उनका शरीर बहुत कृश हो गया। फिर भी उन्होंने तपस्या में कमी न आने दी। .. __एक बार विहार करते हुए वे वीतभय नगरी पधारे। केशी को उसके मंत्रियों ने भड़का दिया कि राजर्षि उदायन पुनः अपना राज्य छीनने आये हैं। केशी भड़क गया। उसने उद्घोषणा करवा दी कि राजर्षि को कोई भी ठहरने