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जैन कथा कोष ६१
(३) तीसरे नाते से मेरा लड़का है, क्योंकि कुबेरसेना मेरी सौत है और तू उसका पुत्र है ।
(४) चौथे नाते से मैं तेरी बुआ हूँ और तू मेरा भतीजा है; क्योंकि तेरा पिता कुबेरदत्त मेरा भाई है।
(५) पाँचवें नाते से मैं तेरी दादी हूँ और तू मेरा पोता है; क्योंकि तेरा पिता कुबेरदत्त, कुबेरसेना का बेटा है और कुबेरसेना मेरी सौत है
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(६) छठे नाते से तू मेरा काका है और मैं तेरी भतीजी हूँ; क्योंकि कुबेरसेना का पति होने के कारण कुबेरदत्त मेरा पिता है और तू उसका छोटा भाई है ।
इन नातों की बात सुनकर कुबेरदत्त भड़क उठा। वह साध्वीजी के पास आगबबूला होता हुआ आया तो साध्वीजी बोलीं- तुम्हारे साथ भी मेरे छः नाते हैं, सुनो
(१) पहले नाते से तुम मेरे भाई हो; क्योंकि हम दोनों ने ही कुबेरसेना के उदर से एक साथ जन्म लिया है।
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(२) दूसरे नाते से तुम मेरे पिता हो; क्योंकि मेरी माता कुबेरसेना के पति बने हुए हो ।
(३) तीसरे नाते से तुम मेरे पति हो, क्योंकि शौरीपुर में हम दोनों का विवाह हुआ है।
(४) चौथे नाते से तुम मेरे पुत्र हो, क्योंकि मैं और कुबेरसेना आपस में सौत हैं और तुम उसके पुत्र हो, इसलिए मेरे भी पुत्र हो ।
(५) पाँचवें नाते से तुम मेरे दादा हो, क्योंकि यह बालक मेरा काका है और तुम इसके पिता हो ।
(६) छठे नाते से तुम मेरे श्वसुर हो, क्योंकि मैं कुबेरसेना के बेटे की पत्नी हूँ और तुम इस समय कुबेरसेना के पति बने हुए हो ।
इन नातों को सुनकर कुबेरदत्त तो ठंडा पड़ गया, लेकिन कुबेरसेना के तनबदन में आग लग गई। उसे विश्वास हो गया कि साध्वी उसे बर्बाद करना चाहती है। वह क्रोध में तमतमाती हुई साध्वी के पास आयी और भला-बुरा कहने लगी । साध्वी ने शान्त स्वर में कहा - ' -' तुम्हारे साथ भी मेरे छ: नाते हैं, उन्हें सुन लो - '
(१) पहले नाते से तुम मेरी माता हो, क्योंकि मैं तुम्हारे उदर से उत्पन्न हुई हूँ।