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जैन कथा कोष १२७
एक बार 'गोशालक' भगवान महावीर के साथ 'कूर्मग्राम' की ओर जा रहा था। मार्ग में एक खेत में तिल का पौधा था, जिसके सात फूल आए हुए थे। 'गोशालक' ने प्रभु से पूछा-'प्रभु ! ये सात फूलों के जीव कहाँ पैदा होंगे?'
भगवान महावीर ने कहा—ये सात फूलों के जीव इसी तिल के पौधे में एक फली में पैदा होंगे।
महावीर आगे चले गये, तब 'गोशालक' ने प्रभु के कथन को असत्य करने के लिए उस पौधे को उखाड़कर एक ओर फेंक दिया।
संयोग की बात थी, वर्षा का मौसम था। उस पौधे को जहाँ फेंका था, मिट्टी और जल का योग पाकर वहीं पल्लवित हो गया।
कुछ समय के बाद जब प्रभु उधर आये तब गोशालक ने उसकी फली को तोड़कर देखा तो उसमें सात तिल थे। सात तिलों को देखकर 'गोशालक' मौन हो गया।
कूर्मग्राम के बाहर एक वैश्यायन नाम का तपस्वी तपस्या में रत था। वह बेले-बेले (दो दिन का उपवास) की तपस्या करता और सूर्य का आताप लिया करता। उसके सिर में जुएं अधिक थीं। धूप के कारण जुएं सिर से ज्यों-ज्यों नीचे गिरती थीं, त्यों-त्यों वह उन्हें उठाकर वापस सिर में डाल लेता। गोशालक उसे कुछ देर तक देखता रहा और उसे यों करते देखकर उसकी भर्त्सना करते हुए कहा—'अरे, ओ जुओं के शय्यातर ! यह क्या ढोंग रचा रखा है?'
वैश्यायन को क्रोध आ गया। कुपित होकर उसने गोशालक को भस्म करने के लिए तेजोलेश्या का प्रयोग किया। तेजोलेश्या ज्यों ही गोशालक पर आक्रमण करने वाली थी कि भगवान् महावीर ने शीतलेश्या फेंककर गोशालक की रक्षा की। __“वैश्यायन ने कहा—प्रभु ! मैंने पहचान लिया। आपके प्रताप से यह अधम बच निकला, अन्यथा यह आज यहाँ भस्म हो ही जाने वाला था। __ चमत्कृत होकर 'गोशालक' ने तेजोलेश्या कैसे प्राप्त की जा सकती है, यह सारा भेद प्रभु से पूछा।
प्रभु ने कहा—छ: महीने तक बेले-बेले का तप करके सूर्य की आतापना