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___ जैन कथा कोष १३५ सेठ का उसे बहुत प्यार भी मिला। फिर भी उसने अपना दु:ख सेठ के सामने कभी नहीं कहा। मन-ही-मन दु:ख समेटे सेठ के यहाँ वह अपने दिन काट रही थी, लेकिन दु:खों का अन्त आ गया हो ऐसा नहीं था। सेठानी के मन में भी वहम का भूत बोलने लगा कि हो न हो सेठजी इसे अपनी पत्नी बनायेंगे। तब मेरा निरादर और अपमान अवश्य ही होगा। हो सकता है, मुझे इस घर से निकलना भी पड़े। ___ एक दिन चन्दनबाला सेठ के पाँव धो रही थी। इसके मुँह पर आये केशों को सेठ ने सँभालकर इसकी पीठ पर रख दिया। अब तो सेठानी का विश्वास पक्का हो गया और वह इस व्याधि का मूल काटने पर ही उतारू हो गई। ___ दूसरे दिन सवेरे-सवेरे जब सेठ देहातों में कार्य करने चला गया और तीन दिन तक नहीं आने को कहकर गया तब सेठानी को मौका मिल गया। इस मौके का लाभ उठाती हुई सेठानी ने चन्दनबाला के सारे केश उतार दिये। सिर में घाव लगा दिये। हाथों में हथकड़ी, पैरों में बेड़ी पहना, घर के तहखाने में डालकर अपने पीहर चली गई। ____तीसरे दिन जब सेठ आया तो उसने मकान को बन्द देखा। आस-पास घूमता हुआ 'चन्दना-चन्दना' पुकारने लगा। तहखाने में दु:खों से व्याकुल बनी चन्दना ने जब सुना तब उसने वहीं से आवाज दी। सेठ ने उसे तहखाने से निकाला और यह सारी स्थिति देख भौंचक्का रह गया। उसने दु:खी स्वर में पूछा-'बोल, तेरी यह दशा किसने की?'
चन्दना ने धैर्य धारण कर कहा—पिताजी ! किसी का भी दोष नहीं है, यह सारा मेरे कर्मों का दोष है। आप मुझे खाने को दीजिए।
सेठ ने उबले हुए उड़द वहीं पड़े देखकर एक सूप के कोने में डालकर उसे दे दिये और स्वयं हथकड़ी-बेड़ी तोड़ने के लिए लुहार को बुलाने गया।
उधर भगवान् महावीर ने छद्मस्थ अवस्था में विहार करते-करते तेरह बातों का अभिग्रह किया। वे तेरह बातें ये थीं---
(१) राजकन्या, (२) बेची गई, (३) मुण्डित, (४) सिर में घाव हों, (५) हाथों में हथकड़ी, (६) पैरों में बेड़ी, (७) तीन दिन की भूखी, (८)