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१८२ जैन कथा कोष
और वहाँ वेश्या मागधिका को बहुत-सा इनाम देकर मुनि कूलबालुक को वश में करने का आदेश दिया।
वेश्या मागधिका ने श्राविका के बारह व्रत अंगीकार किये और कपटश्राविका बनकर वन में मुनि कूलबालुक के पास पहुंच गई। उसने मुनि कूलबालुक को ऐसे लड्डू बहराये कि मुनि अतिसार से पीड़ित हो गये। मुनि की सेवा-सुश्रुषा के बहाने कपट-श्राविका मागधिका भी वहीं रह गई। अपने हाव-भाव से मागधिका ने मुनि कूलबालुक को वश में कर लिया। स्त्री के संसर्ग से मुनि अपने साधुधर्म से पतित हो गये।
पूरी तरह वश में करने के बाद वेश्या मागधिका कूलबालुक मुनि को साथ लेकर चम्पा आयी और मुनि को कूणिक के सामने जा खड़ा किया। कूणिक ने उनसे वैशाली का प्राकार भंग कराने को कहा। मुनि ने कूणिक की बात स्वीकार कर ली। ___ मुनि कूलबालक वैशाली में सरलता से प्रवेश कर गये, क्योंकि साधुओं को कहीं भी आने-जाने में रोक नहीं होती। उन्होंने पूरी नगरी में घूमकर देख लिया कि वहाँ मुनि सुव्रत प्रभु का एक चैत्य बड़ा ही प्रभावशाली है। जब तक वह चैत्य सही-सलामत है, तब तक वैशाली के प्राकार की एक ईंट भी नहीं हिल सकती।
इधर वैशाली के नागरिक भी इस युद्ध से बहुत दुःखी थे। उन्होंने मुनि से युद्ध समाप्त होने का उपाय पूछा तो मुनि ने बताया—'इस चैत्य के टूटते ही युद्ध समाप्त हो जायेगा।' .. - आर्त मनुष्यों के हृदय में विवेक नहीं रहता। वैशाली के नागरिकों ने यह नहीं सोचा कि चैत्य टूटने से युद्ध कैसे बन्द हो जाएगा। उन्होंने चैत्य को तुरन्त ही भूमिसात् कर दिया। .. चैत्य के टूटते ही मगध की सेना ने वैशाली का प्राकार भंग कर दिया। कूणिक ने गधों से हल चलवाकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की। इस प्रकार मुनि कूलबालुक वैशाली के प्राकार-भंग के निमित्त बने ।
–त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र, पर्व १०।१२ -उत्तराध्ययन सूत्र, लक्ष्मीवल्लभकृत वृत्ति