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जैन कथा कोष ११६
भगवान महावीर ने फरमाया- हाँ, स्वीकार करेगा ।
गौतम स्वामी खंधक के पास गये। भगवान की कही हुई सारी बात कही । खंधक बहुत ही प्रभावित हुआ ।
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भगवान महावीर के पास पहुँचकर सारी जिज्ञासाएं रखीं। भगवान ने समाधान देते हुए कहा - 'खंधक ! लोक, जीव, सिद्धि और सिद्ध इन चारों के चार-चार भेद हैं- द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । चारों ही द्रव्य से और क्षेत्र
सान्त हैं । काल से और भाव से चारों ही अनन्त हैं तथा बालमरण से मरने वाला संसार बढ़ाता है तथा पंडितमरण से मरने वाला संसार घटाता है। भगवान से सारी शंकाओं का समुचित समाधान पाकर बहुत ही सन्तुष्ट हुआ । अपना परिव्राजक का वेश छोड़कर भगवान महावीर से पाँच महाव्रत स्वीकार किये। साधु बनने के बाद ग्यारह अंगों का अध्ययन किया । भिक्षु की बारह प्रतिमाओं का वहन किया। दुष्कर 'गुणरत्न' संवत्सर' तप के द्वारा अपनी आत्मा को पूर्णत: भावित करके राजगृही के विपुलगिरि पर्वत पर अनशन कर लिया। एक महीने का अनशन कर, बारह वर्ष के संयम का परिपालन कर बारहवें स्वर्ग में पैदा हुआ। वहाँ से महाविदेह में जाकर मुक्त होगा ।
- भगवती सूत्र, २1१
६७. खंधक मुनि
'सावत्थी' नगरी के महाराज 'कनककेतु' की महारानी का नाम था 'मलयासुन्दरी' । राजकुमार का नाम था खंधक तथा राजकुमारी का नाम था 'सुनन्दा' । 'खंधक कुमार' अनेक कार्य करने में कुशल तथा विचक्षण था तो कुमारी सुनन्दा भी परमविदुषी और शुभ संस्कार वाली थी। दोनों में अत्यधिक प्रेम था । 'सुनन्दा' का विवाह 'कुन्ती' नगर के महाराज 'पुरुषसिंह' के साथ किया गया।
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एक बार 'सावत्थी' नगरी में 'विजयसेन' मुनि आये । राजकुमार 'खंधक' मुनि की वाणी सुनकर विरक्त हो गया । संयमी बन गया । संयम लेकर थोड़े ही दिनों में सुयोग्य बना ।
१. इस तप में क्रमश: १/१६२/१०३ / ८४/६५/५६/४७/३८/३६/३ १०/३ ११/३ १२/२ १३/२ १४/२१५/२१६/२ करने होते हैं। एक परिपाटी में ४८२ दिन लगते हैं, जिसमें ४०८ दिन का तप तथा ७४ पारणे आते हैं।