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६२ जैन कथा कोष का स्थान न दे। परिणामस्वरूप उन्हें नगर में कहीं भी स्थान न मिला। एक कुम्भाकर ने साहस करके उन्हें ठहरने योग्य स्थान दे दिया।
केशी इतने पर भी चुप न हुआ। राजर्षि को मरवाने के लिए उसने अनेक बार विषमिश्रित भोजन दिया, लेकिन रानी प्रभावती, जो देवी बनी थी, उसने उस भोजन को निर्विष कर दिया।
एक बार देवी कहीं दूसरे स्थान पर गई हुई थी। उसकी अनुपस्थिति में राजर्षि के पात्र में विषमिश्रित आहार आ गया। उसे खाने से राजर्षि के शरीर में विष फैल गया। राजर्षि ने अनशन किया, उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ और वे मुक्त हो गए। —(क) त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र १०, ११
-(ख) भगवती १३, ६ -(ग) उत्तराध्ययन भावविजय गणी की टीका, १८/५
-(घ) आवश्यकचूर्णि, उत्तरार्ध, पत्र १६४ ४१. ऋषभदेव भगवान
सारिणी जन्म-समय अवसर्पिणी काल के तीसरे कुल
ईक्ष्वाकुवंश आरे का अन्तिम चरण चिन्ह पिता अन्तिम कुलकर नाभिराजा चारित्र पर्याय १ लाख पूर्व मरुदेवा प्रथम भिक्षा दिन अक्षय तृतीया
(वैशाख शुक्ला ३) जन्म-स्थान विनीता नगरी
बाहुबली के पौत्र कुरु जन्म-तिथि चैत्र कृष्णा अष्टमी
जनपद के राजा श्रेयांस-कुमार कुमार अवस्था २० लाख पूर्व
द्वारा इक्षु-रसदान। राज्यकाल
६३ लाख पूर्व निर्वाण तिथि माघ कृष्णा १३ दीक्षा तिथि चैत्र कृष्णा अष्टमी
छः दिन के उपवास में केवलज्ञान फाल्गुन कृष्णा ११
अष्टापद पर्वन पर। वट वृक्ष के नीचे कुल आयुष्य ८४ लाख पूर्व जिस समय यौगलिक परम्परा परिसमाप्ति पर थी, उस समय नाभि नाम के सातवें कुलकर विद्यमान थे। उनकी पत्नी का नाम था-मरुदेवा। मरुदेवा के
वृषभ
माता