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६० जैन कथा कोष
उसकी यह दुरवस्था देखकर गौतम स्वामी ने नगर के बाहर बगीचे में विराजमान भगवान् महावीर को सारी बात सुनाकर पूछा-'भगवन् ! इसने ऐसे कौन-से क्रर कर्म किये थे?' तब प्रभु ने पूर्वजन्म और इस जन्म में समाचरित इसकी पाप-कहानी सबको सुनाई तथा यह भी फरमाया—अब केवल तीन प्रहर ही यह जीवित रहेगा। शूली पर से यह मरकर प्रथम नरक में जायेगा। वहाँ से संसार में अनेक चक्कर लगायेगा। एक सन्त के पास धर्म-श्रवण कर संयम स्वीकार करके स्वर्ग में जायेगा। अंत में महाविदेह क्षेत्र में जाकर सभी कर्मों का अंत करेगा और मुक्त होगा।
-विपाक सूत्र, अध्ययन २ ३६. उदयन (वासवदत्ता) उदयन कौशाम्बी नगरी के महाराज शतानीक तथा महारानी मृगावती का पुत्र था। महाराज शतानीक के दिवंगत होने पर मृगावती ने उज्जयिनीपति चण्डप्रद्योत को छकाकर अपने पुत्र उदयन को कौशाम्बी के सिंहासन पर बैठाया और वह साध्वी बन गई।
उदयन संगीत-कला में विशेष दक्ष था, वह अद्वितीय वीणा-वादक था। चण्डप्रद्योत की पुत्री वासवदत्ता ने वीणावादन की कला का अभ्यास करना चाहा, पर सिखाने वाला उदयन के सिवाय कोई था नहीं। अत: चण्डप्रद्योत ने एक जाल रचा। काष्ठ का एक हाथी बनवाकर अन्दर सुभट बैठा दिये। उन्हें समझा दिया कि मौका पाकर वे उदयन को पकड़कर उज्जयिनी ले आयें। घोर जंगल में हाथी को दौड़ते देख उदयन ने उस मदोन्मत्त हाथी को पकड़ना चाहा। पर सुभटों की सजगता से स्वयं पकड़ लिया गया। सुभट उसे महाराज प्रद्योत के पास ले आये।
प्रद्योत ने कहा-'मेरी पुत्री को वीणा-वादन की कला में निपुण बनाइये, परन्तु वह कानी है, कुछ सकुचाती है, अतः पर्दे के पीछे रहकर वह विद्या सीखेगी।' उधर कन्या से कहा गया—'संगीताचार्य तो मिल गये हैं, पर वे कुष्ठ रोग से पीड़ित हैं। मैं नहीं चाहता वह संक्रामक रोग कहीं तेरे पर आक्रमण कर दे, इसलिए वह पर्दे के पीछे बैठकर सिखायेंगे।'
यों दोनों को बरगलाया गया, ताकि इनमें प्रेम का अंकुर न पनप जाए। पर छल कितना चल सकता है? एक दिन कन्या आलाप करते समय कुछ गलती