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६६ जैन कथा कोष हो गये।' कनकमंजरी के इन शब्दों को सुनकर तो राजा जितशत्रु चकित रह गया। उसने पूछा— भद्रे ! तुम्हारे इस कथन का रहस्य क्या है?'
कनकमंजरी ने कहा—'खाट के पायों से मेरा मतलब चार मूों से है। आज चार मूरों की गिनती पूरी हो गई।'
राजा ने पूछा कि वे चार मूर्ख कौन-कौन हैं, तो कनकमंजरी कहने लगी
'पहला मूर्ख तो यहाँ का राजा है, जो युवक और वृद्ध की कार्यक्षमता में अन्तर नहीं करता। उसने सभी चित्रकारों को चित्र बनाने के लिए बराबर स्थान दिया है, सभी को समान पारिश्रमिक देता है तथा सभी से समान समय में काम पूरा हुआ चाहता है। जिसको इतना भी विवेक नहीं कि युवा की अपेक्षा वृद्ध व्यक्ति काम कम करेगा, वह मूर्ख नहीं तो और क्या है?' ___ 'दूसरा मूर्ख वह घुड़सवा। है जो राज-मार्ग पर तेजी से घोड़ा दौड़ाता है। उसे इतना भी विचार नहीं कि भीड़-भरे बाजार में घोड़ा दौड़ाने से किसी को चोट लग सकती है। यह भी तो मूर्खता का लक्षण है।'
'तीसरा मूर्ख मेरा पिता है। मैं जब भी भोजन लेकर आती हूँ, तभी वह शरीर-चिन्ता से निवृत्त होने जाता है, इस प्रकार भोजन ठंडा हो जाता है। उसे इतना विचार नहीं कि वृद्धावस्था में जठराग्नि मंद पड़ जाती है, इसलिए गर्म भोजन करना चाहिए, ताकि जल्दी हजम हो सके। ___ 'चौथे मूर्ख तो आप मेरे सामने ही खड़े हैं। आपने इतना भी विचार नहीं किया कि मयूरपंख दीवार पर कैसे टिका रह सकता है, गिर नहीं पड़ेगा? आप उसे वास्तविक समझकर उठाने लगे और अपने नाखून घिस लिये। किया न मूर्खता का काम?'
कनकमंजरी की चतुराई से राजा जितशत्रु बहुत प्रभावित हुआ। उसने उसके साथ विवाह कर लिया।
अगले जन्म में कनकमंजरी ही कनकमाला बनी और राजा जितशत्रु ही प्रत्येक बुद्ध नग्गति हुए।
- उत्तराध्ययन, १८वां अध्ययन, कमलसंयमी तथा भावविजयकृत टीका
४३. कपिल मुनि 'कौशाम्बी' नगरी में 'काश्यप' नाक का एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी