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जैन कथा कोष २५ २१. अयवंती सुकुमाल इतिहास-प्रसिद्ध उज्जयिनी नगरी में 'धन' सेठ के यहाँ 'भद्रा' के उदर से एक पुत्र का जन्म हुआ। वह पहले स्वर्ग के नलिनीगुल्म विमान से आया। वह सौभागी तथा सुकोमल था। अतः इसका नाम रखा गया 'अयवंती सुकुमाल'। ___ युवावस्था प्राप्त कर बत्तीस सुन्दरियों के साथ आमोद-प्रमोद में जीवन व्यतीत कर रहा था। ठीक उसी समय 'आर्य सुहस्ति' नाम के धर्माचार्य उस नगरी में पधारे और अयवंती सुकुमाल के महलों के ठीक नीचे उसकी वाहनशाला में विराजे।
एक दिन आचार्यदेव पश्चिम रात्रि में स्वाध्याय में लीन होकर सस्वर नलिनीगुल्म विमान के अधिकार का स्वाध्याय कर रहे थे। ऊपर सातवीं मंजिल में लेटे कुमार को आचार्यदेव का वह मृदु स्वर बहुत प्रिय लगा। कुछ देर बाद वह नीचे आया और पाठ सुनने लगा। उस वर्णन को सुनते-सुनते उसे जातिस्मरणज्ञान हो गया। अपने पूर्वजन्म को देखा तो पता लगा कि मैं उसी नलिनीगुल्म विमान से यहाँ आया हूँ, जिसका वर्णन आचार्यदेव कर रहे हैं।' उसने विनयपूर्वक पूछा-'प्रभो ! क्या आप भी नलिनीगुल्म विमान से आये हैं?'
बात का भेद खोलते हुए गुरुदेव ने कहा—'मैं वहाँ से नहीं आया हूँ अपितु उस प्रसंग का स्वाध्याय कर रहा हूँ।'
कुमार ने वहाँ पहुँचने का मर्म जानना चाहा। आर्य सुहस्ति ने धर्मोपदेश दिया। उपदेश इतना प्रभावशाली था कि उसे लग गया। माता-पिता, पत्नियों की आज्ञा लेकर मुनिव्रत स्वीकार कर लिया।
मुनिव्रत स्वीकार कर नलिनीगुल्म विमान में कैसे पहुँच सकूँ, बस इसी तड़प को लिये आचार्यश्री से प्रार्थना की—'गुरुदेव ! मैं इस शरीर की कोमलता के कारण अधिक श्रमणाचार के कष्ट सह सकूँ, ऐसा नहीं लगता। अतः मुझे अनशनपूर्वक साधना करने की आज्ञा दीजिए।' ___यों साग्रह अनशन स्वीकार करके निर्जन स्थान की ओर चल दिया। मुनि कथारिका वन (कंटीली झाड़ियों) की ओर बढ़ गया। मार्ग कंटीला था। जिस सुकमाल ने भूमि पर कभी पैर भी नहीं रखा था, वही तीखे काँटों से भरी भूमि पर चलकर श्मशान भूमि में पहुँचा। कायिक कष्टों की अवगणना कर वहाँ ध्यानस्थ हो गया। उस समय एक श्रृगालिनी अपने बच्चों के साथ वहाँ पहुँची